पूर्वांचल

खराब छवि एवं फेल सिस्टम से कैसे उबरेगी सरकार

लखनऊ 27 मई: कोरोना वायरस संकट में इवेंट मैनेजमेंट और दवाब तथा हिन्दुत्व एजेंडे पर दौड रही योगी सरकार की इमेज एवं सिस्टम दोनों पर सवाल खड़े हो गए हैं। जिसे लेकर केन्द्रीय नेतृत्व और आरएसएस चिन्तित है। लगातार मंथन चल रहा है। प्रधानमंत्री पिछले चार वर्षों में लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पीठ थपथपाते रहे है लेकिन इस बार कोरोना संकट में नौकरशाह रहे विधानसभा परिषद् सदस्य ए0 के0 शर्मा की कोरोना संकट में बेहतर मैनेजमेंट के लिए प्रधानमंत्री ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्री शर्मा उत्तर प्रदेश के रहने वाले गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। पिछले दो दशक से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सीधे जुड़े हैं। श्री शर्मा की प्रशंसा को लेकर राजनीतिक हलकों में तरह तरह की चर्चाएं है और यह माना भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की कोरोना वायरस में छवि काफी ख़राब हुई है और सिस्टम पूरी तरह से फेल दिखाई दिया है। पिछले 14 महीनों से योगी की अध्यक्षता में गठित टीम 11 और 3 महीनों से महामारी की त्रासदी के दौर में गठित टीम 9 पूरी तरह से स्वास्थ्य सेवाओं को आवश्यकतानुसार जनता तक पहुंचाने में नाकाम रही है।

कोरोना संकट में नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री को गुमराह करके गांव से लेकर शासन स्तर तक कमेटियां दर कमेटियां और नोडल दर नोडल नौकरशाहों की एक बड़ी फ़ौज तैयार कर दी लेकिन चुने हुए जनप्रनिधियों, सांसद एवं विधायकों को महत्व नहीं दिया। योगी सरकार के पिछले 4 साल के कार्यकाल को देखे तो मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ लगातार दौरे कर रहे हैं। आयोध्या से लेकर प्रयागराज में कुम्भ, मथुरा व अन्य धार्मिक स्थलों पर इवेंट मैनेजमेंट करके वाहवाही लूट रहे हैं। “ठोक दो” फॉर्मूले पर विरोधियों को दबाने, माफियाओं पर बड़ी कार्यवाही करने तथा माफियाओं की सम्पति को जप्त करने, अवैध बिल्डिंगों को तोड़ने का अभियान चला रहे है। तीसरा, मुख्यमंत्री के रूप में हिंदुत्व का बड़ा चेहरा बनकर उत्तर प्रदेश सहित देश भर में हिंदुत्व के एजेंडे को फैला रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे को लेकर राज्यों में हुए चुनाव में योगी आदित्यनाथ सबसे बड़े प्रचारक के रूप में शामिल रहे। पश्चिम बंगाल, असम, हैदराबाद में नगर परिषद् चुनाव योगी आदित्यनाथ अपनी स्टाइल में हिन्दुत्व एजेंडे को बड़ी प्रखरता के साथ चलाते रहे हैं और सब को लेकर बेहतर मीडिया मैनेजमेंट के साथ सरकार की इमेज का प्रचार प्रसार भी करते रहे हैं।

विकास के नाम पर पूर्वांचल बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, प्रदेश में मेडिकल कॉलेज की संख्या बढ़ाने, कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने तथा विकास की तमाम योजनाओं, घोषणाओं का प्रचार करते रहे हैं। योगी आदित्यनाथ कोरोना संकट में फेल जरूर हो गए हैं लेकिन चार साल के कार्यकाल में उन पर किसी प्रकार का कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। नोएडा में मुख्यमंत्रियों के दौरे पर उठे अंधविश्वास को बड़ी बहादुरता के साथ तोड़ा है एक आम चर्चा और अंधविश्वास था कि नोएडा जाने वाले मुख्यमंत्री की कुर्सी चली जाती है लेकिन योगी आदित्यनाथ ने नोएडा में कई बार दौरा करके इस अंधविश्वास को ख़त्म कर दिया। योगी आदित्यनाथ की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता है कि वह निरंतर मेहनत करते है। दौरा करते है और अपने निर्धारित एजेंडे को मीडिया मैनेजमेंट के साथ बड़े ही प्रभावी ढंग से लागू करते है लेकिन मुख्यमंत्री की सबसे बड़ी कमजोरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नक्शे कदम पर चलना है। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुने हुये प्रतिनिधियों, सांसदों राज्यसभा सदस्यों को ज्यादा महत्व नहीं देते उसी तरह से योगी आदित्यनाथ ने जनप्रतिनिधियों, विधायकों की उपेक्षा की लेकिन योगी आदित्यनाथ को यह उपेक्षा कोरोना संकट में अब भारी पड़ रही है क्योकि नौकरशाहों के सुझावों पर चार वर्ष से चला रही सरकार को कोरोना संकट ने सिस्टम और इमेज को लेकर औंधे मुंह गिरा दिया है। 4 वर्षों के कार्यकाल में विकास के नाम पर कोई एक ऐसा मॉडल योगी सरकार में नहीं बना, जो चुनाव में बड़ी उपलब्धि के रूप में गिनाया जा सके।
पूर्वांचल बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, अयोध्या में विकास, राम मंदिर निर्माण सब कुछ अधूरे ही हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की पूरी तरह से कलई खुल गई। 16 मेडिकल कॉलेज बनाने का दावा करने वाली सरकार के शासन काल मे लोग जनपदों से लेकर प्रदेश की राजधानी तक ऑक्सीजन और दवा तथा बेड के अभाव में छटपटा-छटपटा कर मरे है। कोरोना संकट काल में आपदा को अवसर में बदलने के लिए लूट का तांडव चलता रहा। 400-500 रुपए की जीवनरक्षक दवाएँ 15-20 हज़ार में बिकती रही। 800-900 रूपये के ऑक्सीजन सिलेंडर 40-50 हज़ार में बिके। एंबुलेंस 1500 के स्थान पर 15000 हज़ार वसूल कर मरीजों को लूटा गया। आवश्यक वस्तु- दाल, तेल, सब्जियों की कीमतों में 10 से 15 गुना तक वृद्धि हो गई। पूरी तरह से पुलिसिया राज कायम हो गया और विरोध करने वाले मीडियाकर्मी हो या विपक्ष सबके खिलाफ मुकदमे दर्ज करके कार्यवाई भी की गई।

कमियों को छुपाने के लिए पूरे सिस्टम पर दवाब बनाया गया। यहाँ तक की प्रदेश में मची त्राहिमाम, सकड़ों पर हो रही मौतों, श्मशान और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार और दफनाने के लिए लगी लंबी लंबी कतारे देख कर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था को राम भरोसे बताते हुये मौतों को नरसंहार कहा। हाईकोर्ट की प्रदेश सरकार पर की गई टिप्पणी ने योगी सरकार की क्षमता, सिस्टम और इमेज सब की असलियत देश और दुनिया के सामने खोलकर रख दी। दबंग मुख्यमंत्री के रूप में प्रचारित योगी कोरोना संकट में आपदा को अवसर में बदलकर लूट करने वालों पर लगाम लगाने में असफल रहे। जनप्रतिनिधि जो भाजपा से जुड़े हैं वह भी अपनी पीड़ा सार्वजनिक करने के लिए मजबूर हुये। भाजपा के विधायकों ने ही सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े किए, पत्र लिखे लेकिन इसका भी कोई प्रभाव मुख्यमंत्री पर नहीं पड़ा और मुख्यमंत्री जनप्रतिनिधियों और उनकी पीड़ा सुनने के बजाय नौकरशाहों की सलाहों पर निरंतर चलते रहे, जिससे जनप्रतिनिधि उपेक्षित होकर अपने घर बैठ गए है और परिणाम यह है कि सरकार की इमेज और सिस्टम दोनों जनता के सामने और अब केंद्रीय नेतृत्व एवं संघ के बीच भी असफल नेेता के रूप में सामने आ चुकी हैं।

मात्र 8 महीने, उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव को बचे है ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि योगी सरकार की खराब हुई इमेज और फ़ेल हुये सिस्टम की भरपाई कैसे की जाए। संघ और केंद्रीय नेतृत्व दोनों गंभीरता से विचार कर रहे है और जो हालात है तथा राजनीतिक हल्कों में भाजपा में और सरकार के बीच चर्चा है उसे देख कर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि खराब हुई इमेज और फेल हुये सिस्टम के डैमेज कंट्रोल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को संदेश देने के लिए कोई न कोई फॉर्मूला निकालेंगे उसमे परिवर्तन के साथ साथ नये चेहरे को ज़िम्मेदारी देने जैसी कोई भी घटना हो सकती है। समय बताएगा कि उत्तर प्रदेश जहां से केंद्र की सत्ता में पहुचने का रास्ता जाता है, में कोरोना संकट में खराब हुई छवि और फेल हुये सिस्टम को लेकर क्या तरीका अपनाएंगे।

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