विद्युत विभाग:आखिर क्यों हो रहे है बिजलीकर्मी बार-बार आंदोलित,ऐसा क्या है माँगो औऱ समझौते में जिससे भाग रहा प्रबंधन हड़ताल की पड़ताल,ऊर्जामंत्री औऱ चेयरमैन की रार………
सरकार के वरिष्ठ सलाहकार अवनीश अवस्थी औऱ ऊर्जामंत्री की मध्यस्थता औऱ अध्यक्षता में हुए समझौते को लागू करने में कौन सा पेंच है फँसा, चेयरमैन की क्या है भूमिका

वाराणसी18मार्च :संघर्ष समिति के आव्हान पर बिजलीकर्मियो के द्वारा की गई हड़ताल औऱ हड़ताल की नोटिस देने के बाद ऊर्जामंत्री से कई दौर की वार्ता हुए पर वार्ता बे-नतीजा ही रही। आखिर बिजली कर्मियों की माँगो औऱ सहमति से हुए कुछ बिंदुओं पर 3 दिसंबर को हुए समझौते को लागू करने में प्रबंधन क्या राजी नही है जबकी समझौते में सरकार के वरिष्ठ सलाहकार श्री अवनीश अवस्थी औऱ ऊर्जामंत्री ख़ुद मौजूद रहे,जिसकी एक कॉपी सरकार ने माननीय न्यायालय में भी दे रखी हैं। या बिजलीकर्मियो की हड़ताल सियाशी लड़ाई का नतीजा है जो मुख्यमंत्री और ऊर्जामंत्री के बीच जग-ज़ाहिर है औऱ इसका फायदा ऊर्जा प्रबंधन उठा रहा है।
ऊर्जा मंत्री कह रहे है बिजली कर्मी 5 साल का बोनस मांग रहे हैं, विभाग घाटे में होने के बाद भी बिजलीकर्मियो को 1 साल का बोनस दिया गया है। वही बिजलीकर्मियो का कहना है की विभाग के लगातार बढ़ रहे घाटे का जिम्मेदार ऊर्जा प्रबंधन और सरकार है जिनकी ग़लत नीतिओ के कारण विभाग का ये हाल हो रहा है
बिजलीकर्मियो का कहना हैं कि जो हमको पहले मिलता रहा हैं उसी की मांग है ऊर्जा प्रबंधन मिल रही सुविधाओं औऱ कर्मचारी हको की कटौती कर रहा है कोई नई मांग नही है।
वर्ष-2000 में राज्य विद्युत परिषद के विघटन के समय उपभोक्ता लगभग 70 हजार के करीब थे जबकी कर्मचारी 1 लाख से ऊपर औऱ विभाग का घाटा मात्र दहाई के आंकड़ों में था पर 2000 के बाद औऱ वर्ष-2023 में उपभोक्ताओं की संख्या करोड़ो में पहुँच गई जिसके विपरीत कर्मचारी लगभग 40 हज़ार ही बचे है विभाग के नियमित काम भी सरकार ठेके पर दे रही है आज विभाग का घाटा 1 लाख करोड़ के ऊपर हो गया है।
बिजलीकर्मियो का कहना है कि राज्य विद्युत परिषद क़े विघटन के बाद बिजली उत्पादन,वितरण,ट्रांसमिशन के लिए सरकार ने निगम बनाया निगमो के क्रियान्वयन के साथ मेमोरेण्डम औऱ आर्टिकल लागू किया गया जिसमे योग्यता के आधार पर निदेशक, अध्यक्ष,प्रबन्ध निदेशको की नियुक्ति होनी थी परन्तु सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद आज तक विभाग में मेमोरेण्डम औऱ आर्टिकल के तहत अध्यक्ष और निगमो के प्रबंध निदेशक के पदों पर योग्यता के आधार पर भर्ती नही की गए,जबकी तमाम निदेशको की भर्ती मेमोरेण्डम के तहत योग्यता के आधार पर हुई पर अध्यक्ष औऱ प्रबंध निदेशको की नियुक्ति सरकार नियुक्ति विभाग से करती रही,जिससे तमाम ऐसे अयोग्य IAS की नियुक्ति होती रही जो तकनीकी ज्ञान से परे थे। जबकी सरकार चपरासी की भर्ती की भी योग्यता के आधार पर कर रही है। पर ऊर्जा प्रबंधन के शीर्ष पदों पर अपने लोगो को बैठाए रखना चाहती है।
विभाग में मेमोरेण्डम ऑफ़ ऑर्टिकल पूरी तरह से लागू न होना विभाग की दुर्गति का कारण है जिसका खामियाजा बिजलीकर्मियो के साथ प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा हैं।
सरकार और IAS इन सबके बीच बिजली कर्मी औऱ प्रदेश की जनता पिस रही है।
मेमोरेण्डम औऱ ऑर्टिकल का पालने हेतु उपभोक्ता उत्थान समिति द्वारा माननीय न्यायालय में PIL भी दाख़िल कर रखी है पर सरकार और प्रबंधन ने आज तक शपथपत्र नही दाखिल कर मामलों को लंबा कर रखा है।
संघर्ष समिति के साथ हुए समझौते में पहली मांग यही थी कि अध्यक्ष और निगमो में MD की नियुक्ति के लिए मेमोरेण्डम के तहत विज्ञापन जारी किये जायें,जिसपर समझौता भी हुआ।
बस यहीं पेंच फंस गया जब बिजलीकर्मियो ने 3 दिसंबर के समझौते को लागू कराने की बात उठाना सुरू किया।
ऊर्जामंत्री जी अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में तमाम बातों को रखा पर पत्रकार के मेमोरेण्डम ऑफ ऑर्टिकल के लागू करने के सवाल पर भागते नज़र आये।
पूरा मामला यही लगता है मेमोरेण्डम औऱ ऑर्टिकल ,ऊर्जामंत्री औऱ चैयरमैन की बीच सब पिस रहे है।
संघर्ष समिति लगातार कह रही की हम पर हड़ताल थोपी जा रही है,हम हड़ताल पर नही जाना चाहते सिर्फ ऊर्जामंत्री औऱ प्रबंधन की हठधर्मिता के कारण बिजली कर्मी औऱ जनता परेशान किया जा रहा है।और बदनाम बिजलीकर्मियो को किया जा रहा है।