एक झलक

श्राद्ध अपने पूर्वजों और पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने की क्रिया है

16सितंबर2021

श्राद्ध अपने पूर्वजों, अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने की क्रिया का नाम है। हमारे पूर्वज अपने पितरों में इतनी श्रद्धा रखते थे कि मरने के बाद भी उन्हें याद करते थे और उनके सम्मान में यथायोग्य श्रद्धा से भोजन दान किया करते थे। अपने पितरों के प्रति यही श्रद्धान्जलि ही कालांतर में श्राद्ध कर्म के रूप में मनाई जाने लगी।

श्रद्धा तो आज के लोग भी रखा करते हैं मगर मूर्त माँ बाप में नहीं अपितु मृत माँ-बाप में माँ-बाप के सम्मान में जितने बड़े आयोजन आज रखे जाते हैं, शायद ही वैसे पहले भी रखे गये हों फर्क है तो सिर्फ इतना कि पहले जीते जी भी माँ – बाप को सम्मान दिया जाता था और आज केवल मरने के बाद दिया जाता है। श्रद्धा वही फलदायी होती है जो जिन्दा माँ – बाप के प्रति हो अन्यथा उनके मरने के बाद किया जाने वाला श्राद्ध एक आत्मप्रवंचना से ज्यादा कुछ नहीं होगा जो मूर्त माँ – बाप के प्रति श्रद्धा रखता है वही मृत माँ – बाप के प्रति श्राद्ध कर्म करने का सच्चा अधिकारी भी बन जाता है।

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोतियः।

तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम्।।

अपहाय गृहे यो वै पितरौ तीर्थमाव्रजेत।

तस्य पापं तथा प्रोक्तं हनने च तयोर्यथा।।

पुत्रस्य य महत्तीर्थं पित्रोश्चरणपंकजम्।

अन्यतीर्थं तु दूरे वै गत्वा सम्प्राप्यतेपुनः।।

इदं संनिहितं तीर्थं सुलभं धर्मसाधनम्।

पुत्रस्य च स्त्रियाश्चैव तीर्थं गेहे सुशोभनम्।।

(शिव पुराण, रूद्र सं.. कु खं.. – 20)

जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है जो माता-पिता को घर पर छोड़ कर तीर्थ यात्रा के लिये जाता है, वह माता-पिता की हत्या से मिलने वाले पाप का भागी होता है क्योंकि पुत्र के लिये माता-पिता के चरण-सरोज ही महान तीर्थ हैं अन्य तीर्थ तो दूर जाने पर प्राप्त होते हैं परंतु धर्म का साधनभूत यह तीर्थ तो पास में ही सुलभ है पुत्र के लिये (माता-पिता) और स्त्री के लिये (पति) सुंदर तीर्थ घर में ही विद्यमान हैं।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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