हाय हाय उ प्र पावर कार्पोरेशन वाह रे भ्रष्टाचारी,UPPCL मे, छत्तीस 36 पदों की कुर्सियां खाली या अवैध तैनाती जिससे भ्रष्टाचार बुलंदी पर

लखनऊ 7 सितंब लखनऊ र : उ प्र के बिजली के छोटे बडे उपभोक्ताओं की सुविधा के लिए चलने वाले बिजली उद्योग की हालत दिन प्रति दिन खराब होती नजर आ रही है इतना ही नहीं यह उद्योग राज्य विद्युत परिषद के टूटने के बाद से लगातार सत्ताधारी दल के नेताओ का चारागाह जैसा बन चुका है यह कहना गलत नही होगा कि प्रदेश के करोड़ो उपभोक्ताओं के घरों को रोशन करने के लिए और सस्ती बिजली प्रदेश के उपभोक्ताओं को देने के लिए बना यह उद्योग लगातार गलत नीतियों के चलते मानो आईसीयू के विण्टेलेटर पर चलने की स्थिति में आकर खड़ा हो गया है* लगातार राजनैतिक हस्तक्षेप के चलते *इस उद्योग के हित होने वाले निर्णय निरन्तर इस उद्योग का अहित करते साबित हो रहे हैं जिसके कारण घाटे का पैमाना एक बड़ा रूप लेता दिखाई दे रहा है फिलहाल वर्तमान नेताओ के हाथ की कठपुतली बने इस विभाग में एक लम्बे समय से लगभग अति महत्वपूर्ण पदों की लगभग छत्तीस कुर्सियां रिक्त पड़ी है इन कुर्सियों पर बैठने वाले सभी अधिकारी इस उद्योग को चलाने के जिम्मेदार पद होते है जिन्हें कम्पनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर कहा जाता है जो कम्पनी के सभी निर्णय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और अपना मत रखते है लम्बे समय से इतने पदों का खाली रहना एक बड़ा रहस्यमय विषय है आइए हम अपने पाठकों को इन पदों की जानकारी देते चले वर्तमान में समूचे UPPCL में लम्बे समय से 8 खाली चेयरमैन के पद है जिनकी वैकेन्सी तो कभी निकली ही नही । इन पदों पर मनमाने तरीके से अतिक्रमण कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनुभवहीन लोगो द्वारा कब्जा जमा लिया गया है इसी के साथ 8 प्रबन्ध निदेशको और लगभग 20 निदेशको की कुर्सी भी खाली पड़ी है जिसपर पिछली वैकेन्सी निरस्त होने के बाद आज तक दोबारा उसका प्रकाशन नही किया गया है और न ही उस वैकेन्सी के निरस्त होने के कारणों को सार्वजनिक किया गया जबकि उ प्र चुनाव की ओर बढ़ता नजर आ रहा है सारी राजनैतिक पार्टियों ने कमर कस कर मैदान है इसी बीच प्रदेश की जनता का सबसे महत्वपूर्ण उद्योग का जहाज डूबता नजर आ रहा है शायद इस दिशा में न ही सरकार कोई निर्णय लेती नजर आ रही है और दूसरी ओर प्रदेश की अन्य राजनैतिक दलों का भी ध्यान इस उद्योग को बचाने की आवाज बुलंद कर रहा क्या यह मान लिया जाय कि अब यह उद्योग डूबता जहाज है और इसका पूजीपतियो के हाथो मे जाने का समय आ गया है
क्यो कि इस जटिल अभियांत्रिक विभाग को चलाने की जिम्मेदारी जिन अभियन्ताओ के कन्धे पर है जब उनके अध्यक्ष और महासचिव के ऊपर गम्भीर भ्रष्टाचार के आरोप है जो खुद भ्रष्टाचारी है वो कैसे गलत कार्यो का विरोध दर्ज कराएगे जब नेतृत्व ही भ्रष्टाचारी हो तो फिर उसके बारे मे बोलना ही गलत होगा अगर इस उद्योग को बचाना है तो सबसे पहले इन भ्रष्टाचारियो को कार्पोरेशन से बाहर करना होगा क्यो कि इन्ही को तो आदर्श मान कर नवागुन्तक अभियन्ता और भ्रष्टाचार करेगे क्यो कि जब हमारे अग्रज ही भ्रष्टाचारी होगे तो छोटे तो उसी पदचिह्ननो पर ही चलेगे यहाँ तो किसी भी *अभियन्ताओ को यह नही मालूम कि उनके अधिकार क्या है मेमोरेंडम आफ आर्टिकल मे क्या लिखा है किस पद पर वैध नियुक्ती है किस पर अवैध किस पद पर भारतीय प्रशासनिक सेबा के अधिकारी बैठ सकते है किस पद पर नही बस एक ही राग भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार*। । खैर
यह युद्ध अभी शेष है