काशी में नंदी की प्रतीक्षा पूर्ण होने को है
वाराणसी20मई:महंत पन्ना कुंए मे कूदने से पहले नंदी के पास गए, आँखे बंद की और उनके कान में कहने लगे, ‘ विपत्ति भगवान राम पर भी पड़ी थी त्रिलोक स्वामिनी माता सीता को रावण हर ले गया था।
जब हनुमान जी माता की खोज में अशोक वाटिका पहुँचे और उन्हें अपने साथ चलने के लिए कहा तो माता ने मना कर दिया और कहा सीता की प्रतीक्षा ही श्रीराम द्वारा लंका के विनाश की प्रेरणा बनेगी।
यदि तुम्हारे साथ मैं जाउंगी तो कदाचित मुझे पाकर श्रीराम वापस चले जाएंगे इसलिए हे पुत्र मुझे प्रतीक्षा करने दो।
हे नंदी महाराज यही बात मैं आपको स्मरण करा रहा हूँ, प्रतीक्षा करना, इस तीर्थ का उद्धार करने कोई न कोई अवश्य आएगा। माता सीता सा विश्वास रख प्रतीक्षा करना, मेरे हिस्से समाधि आएगी आपके हिस्से प्रतीक्षा है शिव वाहन।’ यह कहकर महंत पन्ना कुंए में कूद गए।
आताताईयों की फौज आई।
अविमुक्तेश्वर क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया गया।
नंदी जटायु से हत होकर यह देखते रहे।
फिर एक दिन एक रानी आयी।
उसने महादेव को आँचल से उठाया, नंदी ने देखा उनके सिर पर माँ अहिल्याबाई का वात्सल्य स्पर्श हो रहा था पर नंदी की प्रतीक्षा शेष थी।
सदियाँ बीतीं, युग बदला नंदी दिन गिन रहे थे।
एक दिन नंदी ने देखा अविमुक्तेश्वर क्षेत्र का पुनरुद्धार हो रहा, उन्होंने सुना नए भारत के राजा ने काशी के कायाकल्प करने का आदेश दिया है।
उस दिन नंदी के शरीर को माँ गंगा से आने वाली हवाओं ने छुआ।
तीन सौ बावन साल लग गए माँ गंगा को निहारे।
नंदी का आनंद लौट आया, विश्वनाथ धाम की अलौकिकता लौट आयी, पर नंदी अभी भी ज्ञानवापी तीर्थ की ओर देख रहे थे, महंत पन्ना को देख रहे थे।
नए भारत के राजा के खंडित कार्यों की कीर्ति पर नंदी का तप भारी पड़ा ।
उसे यह समझ मे आया कि महादेव का काम अधूरा है, माँ गंगा से किया हुआ वादा अधूरा है।
उसने आदेश दिया कि ज्ञानवापी तीर्थ को मुक्त किया जाए।
कुंए में समाधिस्थ महंत पन्ना मुस्कराये।
नंदी की प्रतीक्षा पूर्ण होने को है।
हर हर महादेव।
इसलिए उसके दर देर है। पर अंधेर नही
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