पूर्वांचल

काशी में निकली बाबा विश्वनाथ की गौना बारात, काशीवासियों ने जमकर खेली होली काशी में आज होली शुरू

 

वाराणसी14मार्च: रंगभरी एकादशी के दिन काशीवासियों ने बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेली। सोमवार को ब्रह़्म मुहूर्त में बाबा की चल प्रतिमा के पूजन के बाद आरती के साथ ही रंगभरी के रंगारंग उत्सव का श्रीगणेश हो गया। राजसी ठाट में देवी पार्वती और गणेश के साथ चिनार और अखरोट की लकड़ी से बनी रजत जड़ित पालकी पर प्रतिष्ठित करके बाबा की चल प्रतिमा काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में ले जाई गई। पालकी यात्रा के दौरान इतना गुलाल और अबीर उड़ाया गया कि महंत आवास से मंदिर प्रांगण तक करीब पांच सौ मीटर के बीच जमीन पर अबीर-गुलाल की परत जम गई थी। बाबा का सिंहासन रखने के लिए बिछाई गई हरी कालीन पहले गुलाल की बौछार से लाल हुई फिर भभूत से सफेद हो गई।

इससे पहले महंत डा. कुलपति तिवारी और पं. वाचस्पति तिवारी ने बाबा की विधानपूर्वक आरती उतारी। खादी का शाही कुर्ता धोती धारण किए बाबा के मस्तक पर बनारस की गंगा जमुनी तहजीब रेशमी पगड़ी के रूप में इठला रही थी। बरसाने के लहंगे और आभूषणों में देवी पार्वती का शृंगार संजीव रत्न मिश्र ने किया। शृंगार और भोग आरती के बाद महंत आवास विशेष कक्ष में बाबा के शृंगार का दर्शन भक्तों के लिए खोला गया। जैसे-जैसे सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ रहे थे वैसे वैसे भक्तों का उत्साह कैलाश पर्वत सी ऊंचाई प्राप्त कर रहा था। दर्शन पूजन का क्रम सायं पांच बजे तक अबाध रूप से जारी रहा। ऐसी भी स्थिति आई जब एक तरफ बाबा की रजत पालकी उठाने की तैयारी हो रही थी और दूसरी ओर भक्तों का रेला बाबा के दर्शन के लिए महंत आवास में प्रवेश करने की जद्दोजहद कर रहा था। अत्यधिक भीड़ के कारण भक्तों को अनुरोध पूर्वक रोकना पड़ा।

नगर के विभिन्न क्षेत्रों से आने वाले डमरू दल के सदस्यों ने थोड़ी-थोड़ी देर पर अपनी कला का प्रदर्शन किया। कुछ समय के लिए ऐसा माहौल बन गया मानो समूची काशी ही डमरू निनाद करने उमड़ पड़ी हो। उनका जोश व्यवस्था पर भारी पड़ता दिखा। ऐसे में कुछ समय के लिए सांस्कृतिक अनुष्ठान शिवांजलि को रोकना भी पड़ा। राजशाही स्वरूप में शिवशंकर के दर्शन पाने के लिए हजारों की संख्या में भक्तगण पहुंचे।

सांगीतिक अनुष्ठान के दौरान चंदन का बुरादा और फूलों से बनी अबीर की वर्षा भी रह रह कर की जाती रही। भक्तों की हर्ष ध्वनि के बीच शिव-पार्वती की चल रजत प्रतिमा को काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया और गुलाल की बौछार के बीच सप्तऋषि आरती की प्रक्रिया पूरी की गई।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *