एक झलक

घरों में पहुंचेगी वायरलेस बिजली, पहली बार हो रहा ऐसा

20अगस्त2021

वेलिंगटन। कल्पना कीजिए कि कभी आप सोकर उठें और आपके घर के सामने लगा बिजली का खंभा गायब हो। डरिए नहीं, इन बेतरतीब ढंग से उलझे बिजली के तारों के गायब होने के बावजूद भी आपके घर में बिजली की सप्लाई चालू रहेगी। दअसल, न्यूजीलैंड की सरकार और एमरोड नाम के एक स्टार्टअप के साथ मिलकर इस परियोजना पर तेजी से काम कर रही है। अगर यह पार्टनरशिप काम करती है तो इससे बिना तार के बिजली सप्लाई करने का सपना पूरा हो सकता है।

लेकिन, इस प्रौद्योगिकी को पहले से ही विकसित किया जा चुका है। अब इसकी उपयोगिका को लेकर केस स्टडी की जा रही है। इस तरह के अपने पहले पायलट प्रोग्राम में न्यूजीलैंड का दूसरा सबसे बड़ा बिजली वितरक कंपनी पॉवरको इसी साल स्टार्टअप कंपनी एमरोड की तकनीक का परीक्षण शुरू करेगा। इन दोनों कंपनियों ने इस टेस्ट के लिए 130 फुट के एक प्रोटोटाइप वायरलेस एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर को तैनात करने की योजना बनाई है। इसे संभव बनाने के लिए एमरोड ने रेक्टिफाइड एंटीना को विकसित किया है। इसे रेक्टिना का नाम दिया गया है। इस एंटीना के जरिए ट्रांसमीटर एंटीना से भेजी जा रही बिजली के माइक्रोवेव को पकड़ा जा सकता है। बताया जा रहा है कि इस तरह की तकनीकी न्यूजीलैंड के पहाड़ी इलाकों के लिए वरदान साबित हो सकती है।

एमरोड के संस्थापक ग्रेग कुशनिर ने बताया कि हम लंबी दूरी की वायरलेस पावर ट्रांसमिशन के लिए एक तकनीक विकसित कर चुके हैं। यह तकनीक अपने आप में काफी समय से है। यह ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति लाने के साथ भविष्य भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह की वायरलेस बिजली सप्लाई की पहली परिकल्पना मशहूर वैज्ञानिक निकोल टेस्ला ने सबसे पहले की थी। 1890 के दशक में सबसे पहले टेस्ला ने ही बिना तार के पावर की सप्लाई की परिकल्पना की थी। इसके लिए उन्होंने ‘टेस्ला कॉइल’ नाम की एक ट्रांसफार्मर सर्किट पर काम भी किया था, जो बिजली को पैदा करता था, लेकिन वह यह साबित नहीं कर सके कि वह लंबी दूरी पर बिजली के एक बीम को नियंत्रित कर सकता है। अब इस स्टार्टअप कंपनी का कहना है कि टेस्ला ने जिस सपने को देखा था हम उसे पूरा करने जा रहे हैं।

तारों के बिना विद्युत ऊर्जा का संचरण वास्तव में वायरलेस बिजली है। लोग अक्सर विद्युत ऊर्जा के वायरलेस ट्रांसमिशन की तुलना सूचना के वायरलेस प्रसारण के समान करते हैं, उदाहरण के लिए, रेडियो, सेल फोन या वाई-फाई इंटरनेट। मुख्य अंतर यह है कि रेडियो या माइक्रोवेव प्रसारण के साथ, प्रौद्योगिकी सिर्फ जानकारी को पुनर्प्राप्त करने पर केंद्रित है, और सभी ऊर्जा नहीं जो आप मूल रूप से संचारित करते हैं। ऊर्जा के परिवहन के साथ काम करते समय आप जितना संभव हो उतना कुशल होना चाहते हैं, पास या 100 प्रतिशत

 

वायरलेस बिजली प्रौद्योगिकी का एक अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है लेकिन एक है जो तेजी से विकसित हो रहा है। आप पहले से ही इसके बारे में जानकारी के बिना तकनीक का उपयोग कर रहे होंगे, उदाहरण के लिए, एक ताररहित इलेक्ट्रिक टूथब्रश जो एक पालने या नए चार्जर पैड में रिचार्ज करता है जिसे आप अपने सेल फोन को चार्ज करने के लिए उपयोग कर सकते हैं। हालांकि, उन दोनों उदाहरणों में जबकि तकनीकी रूप से वायरलेस में कोई महत्वपूर्ण मात्रा शामिल नहीं है, टूथब्रश चार्जिंग क्रैडल में बैठता है और सेल फोन चार्जिंग पैड पर स्थित है। दूरी पर ऊर्जा को कुशलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से संचारित करने के तरीके विकसित करना चुनौती रही है। कैसे वायरलेस बिजली काम करता है यह बताने के लिए दो महत्वपूर्ण शर्तें हैं कि वायरलेस बिजली कैसे काम करती है, उदाहरण के लिए, एक इलेक्ट्रिक टूथब्रश, यह “आगमनात्मक युग्मन” और ” विद्युत चुंबकत्व ” द्वारा काम करता है । वायरलेस पावर कंसोर्टियम के अनुसार, “वायरलेस चार्जिंग, जिसे आगमनात्मक चार्जिंग के रूप में भी जाना जाता है, कुछ सरल सिद्धांतों पर आधारित है। प्रौद्योगिकी के लिए दो कॉइल की आवश्यकता होती है: एक ट्रांसमीटर और एक रिसीवर। एक वैकल्पिक वर्तमान ट्रांसमीटर कॉइल के माध्यम से पारित किया जाता है, एक चुंबकीय उत्पन्न करता है। क्षेत्र। यह बदले में, रिसीवर कॉइल में एक वोल्टेज को प्रेरित करता है; इसका उपयोग मोबाइल डिवाइस को पावर देने या बैटरी चार्ज करने के लिए किया जा सकता है। ” आगे समझाने के लिए, जब भी आप एक तार के माध्यम से विद्युत प्रवाह को निर्देशित करते हैं तो एक प्राकृतिक घटना होती है, जो कि तार के चारों ओर एक गोलाकार चुंबकीय क्षेत्र बनाया जाता है। और अगर आप उस तार को लूप / कॉइल करते हैं जो वायर के चुंबकीय क्षेत्र को मजबूत करता है। यदि आप एक दूसरे तार का तार लेते हैं, जिसके पास से होकर गुजरने वाली विद्युत धारा नहीं होती है, और उस कुंडल को पहले कुंडल के चुंबकीय क्षेत्र के भीतर रखें, तो पहले कुंडल से विद्युत धारा चुंबकीय क्षेत्र से होकर गुजरेगी और वहां से गुजरने लगेगी दूसरा कुंडल, जो आगमनात्मक युग्मन है। एक इलेक्ट्रिक टूथब्रश में, चार्जर एक दीवार आउटलेट से जुड़ा होता है जो एक चुंबकीय क्षेत्र बनाने वाले चार्जर के अंदर एक कुंडलित तार को एक विद्युत प्रवाह भेजता है। टूथब्रश के अंदर एक दूसरा कॉइल होता है, जब आप अपने क्रैडल के अंदर टूथब्रश को चार्ज करने के लिए रखते हैं तो विद्युत प्रवाह चुंबकीय क्षेत्र से गुजरता है और टूथब्रश के अंदर कॉइल को बिजली भेजता है, यह कॉइल एक बैटरी से जुड़ा होता है जिसे चार्ज किया जाता है । ट्रांसमिशन लाइन पावर डिस्ट्रीब्यूशन (इलेक्ट्रिक पावर डिस्ट्रीब्यूशन की हमारी वर्तमान प्रणाली) के विकल्प के रूप में वायरलेस पॉवर ट्रांसमिशन पहली बार निकोला टेस्ला द्वारा प्रस्तावित और प्रदर्शित किया गया था । 1899 में, टेस्ला ने तारों का उपयोग किए बिना अपने बिजली स्रोत से पच्चीस मील की दूरी पर स्थित फ्लोरोसेंट लैंप के एक क्षेत्र को शक्ति देकर वायरलेस पावर ट्रांसमिशन का प्रदर्शन किया। टेस्ला के काम के रूप में प्रभावशाली और आगे की सोच के रूप में, उस समय वास्तव में तांबे के पारेषण लाइनों का निर्माण करने के लिए सस्ता था, बजाय इसके कि टेस्ला के प्रयोगों के लिए आवश्यक बिजली जनरेटर के प्रकार का निर्माण किया जाए। टेस्ला रिसर्च फंडिंग से बाहर भाग गया और उस समय वायरलेस पावर वितरण की व्यावहारिक और लागत प्रभावी विधि विकसित नहीं की जा सकी। जबकि टेस्ला 1899 में वायरलेस पावर की व्यावहारिक संभावनाओं को प्रदर्शित करने वाला पहला व्यक्ति था, आज, व्यावसायिक रूप से उपलब्ध इलेक्ट्रिक टूथब्रश और चार्जर मैट की तुलना में बहुत कम है, और दोनों प्रौद्योगिकियों में, टूथब्रश, फोन और अन्य छोटे उपकरणों को अत्यंत आवश्यक है उनके चार्जर के करीब। हालांकि, Marin Soljacic की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक एमआईटी टीम ने 2005 में घरेलू उपयोग के लिए वायरलेस ऊर्जा संचरण की एक विधि का आविष्कार किया जो बहुत अधिक दूरी पर व्यावहारिक है। वायरलेस पावर के लिए नई तकनीक का व्यवसायीकरण करने के लिए 2007 में WiTricity Corp. की स्थापना की गई थी। अमरीका में वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने हवा में बिजली भेजने का उपाय ढूँढ़ लिया है. इसका मतलब यह है कि उन्होंने दो उपकरणों के बीच बिना तार या केबल के बिजली भेजने में सफलता पाई है. इस नई तकनीक से हमारे घरों में बिजली से चलने वाले तमाम उपकरणों के लिए अब प्लग लगाने की ज़रुरत नहीं रह जाएगी. ‘साइंस’ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने साठ वॉट के एक बल्ब को बिना तारों से जोड़े दो मीटर दूरी से जला लिया. *वाइ-ट्राइसिटी*

अब तक हम ‘वाइ-फ़ाइ’ सिस्टम के बारे में सुनते आए थे. इस तकनीक से कप्यूटर पर इंटरनेट चलाने के लिए इसे केबल से जोड़ने की ज़रूरत नहीं होती. इसे सिर्फ़ बिजली के केबल से जोड़ने की ज़रूरत होती है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसकी भी ज़रुरत ख़त्म कर दी है. और इस तकनीक को नाम दिया गया है ‘वाई-ट्राइसिटी’. इस तकनीक को सफलता पूर्वक ढूँढ़ा है मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने. उन्होंने इसे सिद्धांत रुप में वर्ष 2006 में मान लिया था लेकिन इसका व्यावहारिक प्रदर्शन अब जाकर किया गया है. इस प्रयोग में शामिल सहायक प्रोफ़ेसर मैरीन सोल्जैसिक ने कहा, “हमे सिद्धांतों पर पूरा भरोसा था लेकिन प्रयोग से ही इसकी जाँच होती है.” इस प्रयोग को देख चुके इंपीरियल कॉलेज लंदन के सर जॉन पेंड्री ने कहा, “इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका आविष्कार वो लोग दस या बीस साल पहले नहीं कर सकते थे.” लेकिन उनका कहना है कि यह समय की भी बात थी. अब सब कुछ मोबाइल हो चुका है और केबल हट गए हैं. हर उपकरण को सिर्फ़ बिजली की ज़रूरत होती है, ऐसे में बिजली का केबल ही वह केबल था जिसे हटाया जाना ज़रुरी था.

कैसे काम करता है

वैज्ञानिकों ने प्रयोग के तौर पर एक बल्ब जलाकर देखा है. इसके लिए ताँबे के दो क़्वाइल होते हैं. एक बिजली के स्रोत के पास और दूसरा उस उपकरण के पास जिसे बिजली की ज़रुरत है. उन्हें ‘मैगनेटिक रेज़ोनेटर्स’ कहा गया है. जैसा कि नाम से ज़ाहिर है यह कंपन के सिद्धांत पर काम करता है. जब बिजली के स्रोत वाला क्वाइल चुंबकीय तरंग भेजता है तो दूसरे छोर पर रखा क्वाइल इस तंरग से कंपित होने लगता है. जब दोनों क्वाइल के कंपन मिल जाते हैं तो दोनों के बीच बिजली का प्रवाह शुरु हो जाता है. प्रोफ़ेसर मैरीन सोल्जैसिक कहते हैं यह ठीक वैसा ही जैसा कि कोई ओपरा सिंगर अपनी आवाज़ के कंपन से वाइन के ग्लास को चटखा दे.

पहले भी हुए प्रयोग

हालांकि एमआईटी की टीम ऐसी पहली टीम नहीं है जो बिना तार की बिजली पर काम कर रही है. इससे पहले उन्नीसवीं सदी में एक भौतिक विज्ञानी निकोला टेस्ला ने ऐसा एक प्रयोग करने की कोशिश की थी. वे 29 मीटर टॉवर से ऐसा करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनका प्रयोग अधूरा ही रह गया था क्योंकि उनके पास पैसे ख़त्म हो गए थे. इसके बाद जो भी प्रयोग हुए उनमें लेज़र के सहारे बिजली भेजने की कोशिश की गई. लेकिन इसके लिए दोनों सिरों को आमने सामने रखना ज़रूरी था, इसलिए वह सफल नहीं हुआ. प्रोफ़ेसर मैरीन सोल्जैसिक का कहना है कि अब इसमें सुधार करने की ज़रुरत है. वे कहते हैं कि इन क्वाइलों के आकार घटाने होंगे और इनकी क्षमता बढ़ानी होगी ताकि यह दूर तक काम कर सके.

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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