जब आप के अंदर का “मैं” मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है, भीतर का “मैं” मिटना ज़रूरी
22जून2022
सुकरात समुद्र तट पर टहल रहे थे। उनकी नजर तट पर खड़े एक रोते बच्चे पर पड़ी।
वे उसके पास गये और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा , ”तुम क्यों रो रहे हो?”
लड़के ने कहा, ‘ये जो मेरे हाथ में प्याला है मैं उसमें इस समुद्र को भरना चाहता हूँ पर यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं।”
बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्माद में चले गये और स्वयं रोने लगे।
अब पूछने की बारी बच्चे की थी।
बच्चा कहने लगा,’ आप भी मेरी तरह रोने लगे पर आपका प्याला कहाँ है?’
सुकरात ने जवाब दिया,’बालक! तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो,और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ।
आज तुमने सिखा दिया कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता है , मैं व्यर्थ ही बेचैन रहा।
यह सुनकर बच्चे ने प्याले को दूर समुद्र में फेंक दिया और बोला, “सागर अगर तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता तो मेरा प्याला तो तुम्हारे में समा सकता है।”
इतना सुनना था कि सुकरात बच्चे के पैरों में गिर पड़े और बोले, “बहुत कीमती सूत्र हाथ में लगा है।
हे परमात्मा ! आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते हैं पर मैं तो आपमें लीन हो सकता हूँ।”
ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को ज्ञान देना था तो भगवान उस बालक में समा गये।
सुकरात का सारा अभिमान ध्वस्त हो गया जिस सुकरात से मिलने के लिये सम्राट समय लेते थे वह सुकरात एक बच्चे के चरणों में लोट गए।
ईश्वर जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तब आपके अंदर का “मैं ” सबसे पहले मिटता है।
या यूँ कहें !
जब आप के अंदर का “मैं” मिटता है तभी ईश्वर की कृपा होती है।