जो अपने आप नहीं सीखते, स्वावलंबी नहीं बनते
15दिसंबर2021
जो अपने आप नहीं सीखते, स्वावलंबी नहीं बनते, उन्हें सिखाने समझाने के लिये जोखिम परिस्थितियों में डालकर सिखाया जाता है। स्वावलम्बन बहुत ही आवश्यक है, गरूड़ ने अपने बच्चे को पीठ पर बिठाया और उसे अपने साथ दूसरे सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया।
दिन भर दोनों दाना चुगते रहे, सायंकाल घर लौटे गरूड़ अपने बच्चे को यातायात प्रयोजन में भी साथ दिया करते थे यह क्रम बहुत दिन चला। गरूड़ ने बहुतेरा कहा, पर बच्चे ने उड़ना न सीखा। उसकी धारणा थी जब तक निःशुल्क साधन उपलब्ध हों, तब तक स्वयं श्रम क्यों किया जाये। गरूड़ बच्चे की इस दुर्बलता को बड़ी सतर्कता से देखते रहे।
एक दिन जब वह आकाश में उड़ रहे थे, तब धीरे से अपने पंख खींच लिये। बच्चा गिरने लगा, तब चेत आया और पंख फड़फड़ाये गिरते–गिरते बचा पर अब उसने उड़ना सीखने की आवश्यकता अनुभव कर ली। सायंकाल बालक गरूड़ ने माँ से कहा माँ, आज पंख न फड़फड़ाये होते तो पिताजी ने बीच में ही मार दिया होता। मादा गरूड़ हँसी और बोली”बेटे जो अपने आप नहीं सीखते,स्वावलंबी नहीं बनते, उन्हें सिखाने–समझाने का यही नियम है।