ज्ञानवापी मामले में वर्शिंप एक्ट को लेकर भी अधिवक्ता नहीं हो रहे एकमत
22मई2022
ज्ञानवापी परिसर के विवाद के बाद से प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की भी खूब चर्चा हो रही है। इस कानून को लेकर पक्ष और विपक्ष के लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। ज्ञानवापी परिसर के विवाद के बाद से उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 की भी खूब चर्चा हो रही है। इस कानून को लेकर पक्ष और विपक्ष के लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। अधिवक्ता भी इस मामले में एकमत नहीं हैं और इस अधिनियम के क्लॉज के अध्ययन में जुटे हैं। दरअसल, इस कानून के आर्टिकल में कई विकल्प भी दिए गए हैं। आइए जानते हैं इस कानून पर अधिवक्ताओं की राय
प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता एखलाक अहमद ने कहा कि ज्ञानवापी को लेकर दायर सभी वाद में यह बात साफ तौर पर कही गई है कि इस मस्जिद को औरंगजेब के जमाने में वर्ष 1669 में बनाया गया। ऐसे में वर्शिप एक्ट में यह साफ तौर पर कहा गया है कि अगस्त 1947 के बाद हर धार्मिक स्थलों की यथास्थिति रहेगी। इनमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है। उसके खिलाफ कोई याचिका दाखिल व स्वीकार नहीं होगी। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता रईस अहमद खान ने कहा कि ज्ञानवापी पर विशेष उपासना स्थल अधिनियम 1991 में यहां लागू होगा। 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की स्थिति थी और उसी स्थिति में है। वर्ष1937 में ही इसका निर्णय हुआ था और तब से लेकर अब तक नमाज पढ़ी जाती है। ऐसे में यह मस्जिद है, मस्जिद रहेगी। यह मायने नहीं रखता कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है या मस्जिद पहले से है।
यूपी बार काउंसिल के पूर्व चेयरमैन अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि ज्ञानवापी मामले में धर्मस्थल कानून विधेयक 1991 लागू नहीं होता है, क्योंकि यहां कानून आने के पहले से और बाद में भी शृंगार गौरी का पूजन और दर्शन होता रहा। हिंदू धर्मावलंबियों को पूजा-पाठ का जन्मसिद्ध अधिकार है। ऑर्डर 7 रूल 11 मेंटनेबुल नहीं होगा। कोर्ट आदेश देने के पहले कमीशन की रिपोर्ट, स्कन्दपुराण और अन्य दस्तावेजों को देखेगी और इसके बाद ही निर्णय देगी। अधिवक्ता स्वयं भू लार्ड विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग वाद अमरनाथ शर्मा ने कहा कि ज्ञानवापी का मूल मुकदमा वर्ष 1991 में दाखिल हुआ है। उस वक्त धर्मस्थल विधेयक लागू नहीं था। 1947 में मंदिर का स्वरूप था और तब से पूजा होती चली आ रही है। पूजा पाठ तो कुछ साल पहले बंद कराया गया, इसके बावजूद यहां श्रृंगार गौरी की पूजा हो रही है। एक्ट के क्लॉज 4 (2) में साफ है कि ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों पर यह लागू नहीं हेागा।