एक झलक

देव दिवाली

19नवंबर2021

बैकुंठ चतुर्दशी हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) तक सृष्टि का सम्पूर्ण कार्यभार भगवान शिव को देकर विश्राम करते हैं जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो सभी देवी-देवता इसकी ख़ुशी में देव दिवाली मनाते हैं भगवान शिव बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान विष्णु को सृष्टि का सारा कामकाज दोबारा सौंपते हैं ऐसी मान्यता है कि इस दिन बैकुण्ठ लोक के द्वार खुले रहते हैं जो भी विधि-विधान से इस दिन व्रत और पूजा करता है वो मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के पास बैंकुठ लोक में निवास करता है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व

सनातन धर्म में बैकुंठ चतुर्दशी का खास महत्व है। मान्यता है कि जो भी बैकुंठ के दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना करता है, उसे भगवान विष्णु और शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु चातुर्मास तक सृष्टि का पूरा कार्यभार भगवान शिव को देकर विश्राम करते हैं इसके बाद भगवान विष्णु जब देवउठनी एकादशी पर जागते हैं तो वे भगवान शिव की भक्ति में लग जाते हैं मान्यता है बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और शिव एक ही रूप में होते हैं मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को जो भी बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का पालन करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। इस दिन जो भी भक्त विष्णु जी का पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता एकता का प्रतीक है।

वैकुंठ चतुर्दशी की पुराणों में प्रमुख रूप से ये ०३ कथाएं मिलती हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें वैकुंठ चतुर्दशी के दिन पढ़ने से पाप कर्मों का दोष मिट जाता है।

कथा-०१

वैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है नारद जी पृथ्वी लोक से घूम कर बैकुंठ धाम पंहुचते हैं भगवान विष्णु उन्हें आदरपूर्वक बिठाते हैं और प्रसन्न होकर उनके आने का कारण पूछते हैं।

नारद जी कहते है हे प्रभु आपने अपना नाम कृपानिधान रखा है इससे आपके जो प्रिय भक्त हैं वही तर पाते हैं जो सामान्य नर-नारी है, वह वंचित रह जाते हैं इसलिए आप मुझे कोई ऐसा सरल मार्ग बताएं, जिससे सामान्य भक्त भी आपकी भक्ति कर मुक्ति पा सकें।

यह सुनकर विष्णु जी बोले हे नारद मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे।

इसके बाद विष्णु जी जय-विजय को बुलाते हैं और उन्हें कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा थोडा़-सा भी नाम लेकर पूजन करेगा, वह बैकुंठ धाम को प्राप्त करेगा।

कथा- ०२

पौराणिक मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने १००० (एक हजार) स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।

भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए १००० कमल पुष्प चढ़ाने थे एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं मुझे ‘कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ कहा जाता है यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए।

विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले ‘हे विष्णु तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब ‘बैकुंठ चतुर्दशी’ कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।

भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान किया शिवजी तथा विष्णुजी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगें। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान बैकुंठ धाम में सुनिश्चित करेगा।

कथा ०३

धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था, उसके ऊपर कई पाप थे। एक दिन वो गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया, उस दिन वैकुंठ चतुर्दशी थी कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आए थे, उस भीड़ में धनेश्वर भी उन सभी के साथ था इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पुण्य मिला जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गए और नरक में भेज दिया।

तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालुओं के पुण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गए इसलिए इसे वैकुंठ धाम मिलेगा अत: धनेश्वर को वैकुंठ धाम की प्राप्ति हुई।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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