देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना – जलियांवाला बाग हत्याकांड
13अप्रैल2022
देश की आजादी के इतिहास में 13 अप्रैल का दिन एक दुखद घटना के साथ दर्ज है। वह वर्ष 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग नाम के इस बगीचे में अंग्रेजों की गोलीबारी से घबराई बहुत सी औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए कुएं में कूद गईं। निकास का रास्ता संकरा होने के कारण बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आए।
6 फरवरी साल 1919 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में राॅलेक्ट नामक एक बिल मार्च महीने में पास किया गया था। जिसके बाद से यह बिल एक अधिनियम बन गया था। इस अधिनियम के तहत ब्रिटिश सरकार भारत के किसी भी नागरिक को देशद्रोह के शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी, और उस व्यक्ति को बिना किसी जूरी के सामने पेश किए जेल में डाल सकती थी। इसके अलावा पुलिस उसे 2 साल तक बिना किसी जांच के हिरासत में रख सकती थी। इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार भारतीयों को काबू में रखना चाहती थी,
जिससे देश के अंदर आजादी के लिए चल रहे सभी आंदोलन खत्म हो सके। इस अधिनियम का महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने विरोध किया। तथा इसके लिए सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया।
सन 1919 में भारत के अमृतसर में भी इस सत्याग्रह आंदोलन के तहत राॅलेक्ट एक्ट का विरोध किया गया। जिसमें काफी भारतीयों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। 9 अप्रैल को सरकार ने पंजाब से ताल्लुक रखने वाले दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इन नेताओं के नाम डॉक्टर सैफुद्दीन कच्छु तथा डॉक्टर सत्यपाल था। इन दोनों नेताओं को गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें अमृतसर के धर्मशाला में नजरबंद कर दिया था।
इन दोनों के काफी लोकप्रिय होने के कारण जनता इनकी रिहाई के लिए 10 अप्रैल 1919 को डिप्टी कमिश्नर मिल्स इर्विन से मिलना चाहती थी लेकिन डिप्टी कमिश्नर ने मना कर दिया जिसकी वजह से जनता में आक्रोश काफी बढ़ गया। जिनके बाद गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन तार विभाग सहित कई सरकारी दस्तावेजों को जला दिए जिससे सरकारी कामकाज में काफी दिक्कत आई। तथा इस हिंसा में तीन अंग्रेजों की मौत हो गयी। इन हत्याओं से सरकार काफी नाराज़ थी। अमृतसर के बिगड़ते हालात को ध्यान में रखते हुए वहां की बागडोर डिप्टी कमिश्नर मिल्स इरविन से ब्रिगेडियर जनरल आर. ई. एच. डायर को सौंपा दी गई। 11 अप्रैल से ही जनरल डायर ने अमृतसर के हालातों को काबू करना शुरू कर दिया। पंजाब राज्य के हालातों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने राज्य के कई शहरों में मार्शल लॉ लगा दिया। इस लॉ के तहत नागरिकों पर उनकी स्वतंत्रता और सार्वजनिक समारोह पर प्रतिबंध लगा दिया था। मार्शल लॉ के तहत जहां पर भी 3 से ज्यादा लोग इकट्ठे नजर आते उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता था।
ब्रिटिश सरकार का मकसद इस लाॅ के द्वारा क्रांतिकारियों की गतिविधि व उनकी सभाओं पर प्रतिबंध लगाना था, ताकि क्रांतिकारी उनके खिलाफ कोई षड्यंत्र ना रच सके। 12 मार्च सन 1919 में अमृतसर के दो लोकप्रिय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। इन नेताओं के नाम चौधरी गुगामल और महाशय रतनचंद था। इन नेताओं की गिरफ्तारी से जनता काफी आक्रोशित हो गई जिसके चलते वहां के हालात और बिगड़ने लगे।
13 अप्रैल सन 1919 में जलियांवाला बाग में काफी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे। उस दिन कर्फ्यू लगा था तथा उस दिन पंजाब प्रांत के मुख्य त्योहार बैसाखी का दिन भी था जिसके चलते काफी लोग स्वर्ण मंदिर घूमने के लिए भी आये थे। स्वर्ण मंदिर जलियांवाला बाग के निकट में ही स्थित है अतः लोगों का वहां पर आना स्वभाविक था। इस तरह उस बाग में करीब करीब 20000 लोग मौजूद थे। जिसमें से कुछ लोग अपने प्रिय नेता के लिए शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे
तथा कुछ लोग अपने परिवार, मित्रों, व बच्चों के साथ घूमने के लिए आए थे। जनरल डायर को भी गुप्त रूप से बाग में हो रही सभा की सूचना मिली थी। लगभग 4:00 बजे जनरल डायर अपने लगभग डेढ़ सौ के करीब सिपाही लेकर जलियांवाला बाग में पहुंचे। जनरल डायर को लगा कि यह सभा दंगे फैलाने व विरोध प्रदर्शन के लिए हो रही है। उसने आव देखा ना ताव बिना किसी चेतावनी दिए जलियांवाला बाग में उपस्थित सभी लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग का आदेश दे दिया। जिसके चलते बच्चे, महिलाओं, व पुरुषों समेत हजारों की संख्या में लोग शहीद हो गए और हजारों घायल हो गए। लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाता रहा जनरल डायर। वहीं दूसरी ओर गोली से बचने के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे किंतु बाग की दीवार लगभग 10 फीट ऊंची होने के कारण नहीं भाग पाए तथा गोलियों से बचने के लिए वहीं पर मौजूद कुएं में बच्चे व महिलाएं कूदने लगे। देखते ही देखते जलियांवाला बाग की जमीन रक्त से लाल हो गयी थी।