कविता-कहानी

पुरखे कभी विदा नहीं होते हैं

3अक्टूबर2021

पुरखे जगत से कभी विदा नहीं होते हैं

संतति के कण कण में रचे होते हैं

मज्जा नाड़ी रक्त में प्रवाहित होते हैं

चेतना प्रज्ञा स्मृति में समाहित होते हैं

देहरी आँगन द्वार दीवार में ढले होते हैं

ऐनक कुर्सी मेज कलम सब में बसे होते है

तीज त्यौहार प्रथा परम्पराओं में होते हैं

भूल चूक होते ही तस्वीरों में प्रगट होते हैं

हौंसलों उम्मीदों और सहारों में भी छिपे होते हैं

विचारों क्रियाओं विरासतों में अवश्य ही होते हैं

बोल चाल भाषा शैली हाव भाव सबमें होते हैं

पुरखे जगत से कभी विदा नहीं होते है

ज्येष्ठ भगिनी के चेहरे के पीछे छिपी माँ में उपस्थित होते हैं

ज्येष्ठ भ्राता के उत्तरदायित्वों में पिता ही विराजित होते हैं

पुरखे जगत से कभी विदा नहीं होते…..

पुरखे आसमान से नीचे आते आशीर्वादों में होते हैं

पुरखे धरती से ऊपर जाती श्रद्धाओं में होते हैं……

पुरखे जगत से कभी विदा नहीं होते हैं….

 

 

(पितरों को नमन)

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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