एक झलक

बसंत पंचमी से अयोध्या के मंदिरों में शुरू हुई होली उत्सव,40 दिनों तक संत अलग-अलग रंगों में खेलते हैं होली

अयोध्या5फरवरी: ( होली खेले रघुबीरा ,अवध में होली खेले रघुबीरा ) भगवान श्री राम के बारे में होली के ख़ास अवसर पर गाए जाने वाले गीत को सुन कर अवध में खेली जाने वाली होली के स्वरूप और परम्परा का भान हो जाता है। होली उत्सव मथुरा, काशी ही नही अयोध्या का भी प्रमुख त्योहार है। यहां के मंदिर में बसंत पंचमी से ही साधु संत गर्भगृह में विराजमान भगवान को अबीर गुलाल अर्पित करने की परंपरा को प्रारंभ किया गया।राम नगरी अयोध्या में बसंत पंचमी से ही रंग उत्सव प्रारंभ हो जाता है अयोध्या में यह परंपरा सैकड़ों वर्षो से चला रहा है। यहां बसंत पंचमी से लेकर होलिका दहन तक यानी 40 दिनों तक होली के अलग-अलग कई रंग दिखाई देते है .साधू संतो की माने तो इस दिन वह किसी और के साथ नहीं बल्कि साक्षात् भगवान के साथ ही होली खेलते है। कभी गुलाबों के संग तो कभी फूलों के संग होली खेलते हैं। वहीं रंगभरी एकादशी के दिन हनुमान गढ़ी के नागा साधु परिसर में रंग गुलाल खेलते है। जिसके बाद सभी नागा साधु स्थान की निशानी लेकर बाजे गाजे के साथ सड़कों पर करतब दिखाते हुए अयोध्या के विभिन्न मंदिरों में जाते हैं। संतो के संग होली खेलते हैं। इस मौके पर अवध के नृत्य संगीत का जो जादू मंदिरों में दिखाई देता है। और साधू संत हो या आम नागरिक सभी अपनी सुध बुध खोकर होली के रंग में नाचते है।संतों के मुताबिक होली पर होने वाले इस गीत नृत्य के जरिए साधू संत अपने आराध्य को प्रसन्नं करते है और बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाते है। ऊंच नीच जांति- पांति ,अमीर गरीब का का फर्क समाप्त हो जाता है और पूरी अयोध्या राममई हो जाती है साधू संत इस ख़ास अवसर पर अपने आराध्य से होली खेलते है और इसी लिए मंदिर मंदिर अवधी गीत संगीत में डूब जाता है। वैसे तो आमतौर पर गृहस्थ जीवन और समाज से विरक्त रहने वाले इन संतो ने अपनी परम्परा को निभाते हुए जमकर होली के उल्लास में रंगों का यह पर्व मनाते है और इस उत्साह में स्थानीय लोग और अयोध्या आने वाले श्रद्धालु भी शामिल होते हैं।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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