रागी को भगवान तो मिल सकते हैं मगर उसकी भगवत्ता नहीं मिल सकती
5नवंबर2021
शास्त्र कहते हैं कि राग में नहीं अनुराग में जीवन जीना चाहिए किसी के प्रति राग उत्पन्न होता है तो वासना जन्म लेती है और किसी के प्रति अनुराग उत्पन्न होता है तो उपासना जन्म लेती है। सूर्पनखा भी प्रभु को पाना चाहती थी और शबरी भी एक राग से प्रभु को पाना चाहती थी और एक अनुराग से सूर्पनखा राग और शबरी अनुराग है।
रागी को प्रभु तक जाना पड़ता है और अनुरागी तक प्रभु स्वयं जाते हैं, रागी को भगवान तो मिल सकते हैं मगर उसकी भगवत्ता नहीं मिल सकती। अनुरागी को भगवान भी मिल जाते हैं और उनकी भगवत्ता भी प्राप्त हो जाती है। जब भी, जहाँ भी और जिसके भी प्रति राग होगा, तब, तहाँ और उसे मन भोगना चाहेगा राग भोग को जन्म देता है और अनुराग योग को प्रभु मेरे हैं ये अनुराग और प्रभु मेरे लिये हैं यही राग है, ऐसे ही दुनियाँ की प्रत्येक वस्तु को अपना समझना अनुराग और अपने लिये समझना ही राग है।