रात्रि में हुवाभेला का मेला’ का आयोजन,मंडुवाडीह में दीवाली की देर रात हर साल लगता है मेला
वाराणसी5नवम्बर: विश्व की प्राचीनतम नगरी व देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में कई प्रसिद्ध मेले का आयोजन होता है। इन सभी मेलों का अपना महत्व व इतिहास है। वहीं काशी में ऐसे भी प्राचीन मेलों का आयोजन होता है, जिसके बारे में बहुत कम जानते हैं। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक ऐसा ही सैकड़ों साल पुराना मेला लगता है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। मंडुआडीह थाना के बगल में स्थित गणेश मंदिर पोखरा(मांडवी तालाब) पर एक ऐसा ही मेला लगता है, जिसे लोग ‘भेला का मेला’ कहते हैं।
इस मेले की खासियत है भेला के फल से बनने वाली दमा की दवा, जिसके लिए दूर-दूर से दमा रोगी मेले में आते हैं। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि कितना भी पुराना दमा का रोग हो वह यहां मिलने वाली दवा से सही हो जाता है। साथ ही इस मेले में बांस व लकड़ी के बने घरेलु उत्पाद मिलते हैं।
जंगली फल होता है भेला, जिससे बनती है दवा
भेला एक जंगली फल होता है। जिससे दमा रागियों के लिए दवा बनाई जाती है। मेले में आये दवा पिलाने वाले बताते हैं कि भेला के फल को उबालकर उसे देशी घी में मिलाया जाता है और उसे दमा रोगियों का दिया जाता है इसके बदले में रोगी जो भी रुपये दुकानदार को देते हैं वह दुकानदार रख लेते हैं। यह दवा दीपावली की रात से सूर्योदय तक ही पिलाया जाता है।
‘भेला का मेला’ हर साल दीपावली की भोर में लगता है और सुबह 8 बजे तक चलता है। इस मेले में बांस के बने उत्पाद सूप, दउरा, लकड़ी की खाट, झाड़ू, चलनी आदि घरेलू सामान मिलते हैं। इसे खरीदने के लिए भी लोग दूर-दूर से आते हैं, साथ ही शहर व आस-पास की महिलाएं भी आती हैं। इस मेले में सभी समुदाय के लोगों की अच्छी खासी भीड़ होती है। बताया जाता है की इस मेले में मिर्जापुर, चंदौली व अन्य जिलों से दवा पिलाने व दमा से पीड़ित लोग दवा पीने आते हैं।