एक झलक

लोगो कहना है आदमी खाली हाथ आया था और खाली हाथ चला जाता है लेकिन सनातन धर्म के अनुसार यह सत्य नहीं है

14जुलाई2022

लोग कहते हैं कि मरने के बाद कुछ भी साथ नहीं जाता है सब यहीं का यहीं धरा रह जाता है आदमी खाली हाथ आया था और खाली हाथ चला जाता है लेकिन सनातन धर्म के अनुसार यह सत्य नहीं है।

सनातन धर्म कहता है कि व्यक्ति जो साथ लाया था वह तो साथ ले ही जायेगा, साथ ही वह भी साथ ले जायेगा जो उसने इस जन्म में अर्जित किया है क्या साथ लाया था और क्या अर्जित किया है यह जानना जारूरी है।

व्यक्ति जब जन्म लेता है तो अपने साथ तीन चीजें लाता है 1.संचित कर्म, 2.स्मृति और 3.जागृति हां एक चौथी चीज भी है और वह है सूक्ष्म शरीर।

1.क्या है संचित कर्म?

सनातन हिंदू दर्शन के अनुसार, मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर या देह ही नष्ट होती है, जबकि सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है यह सूक्ष्म शरीर ही जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कारों का वाहक होता है संस्कार अर्थात हमने जो भी अच्छे और बुरे कर्म किये हैं वे सभी और हमारी आदतें हैं।

ये संस्कार मनुष्य के पूर्वजन्मों से ही नहीं आते, अपितु माता-पिता के संस्कार भी रज और वीर्य के माध्यम से उसमें (सूक्ष्म शरीर में) प्रविष्ट होते हैं, जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व इन दोनों से ही प्रभावित होता है बालक के गर्भधारण की परिस्थितियां भी इन पर प्रभाव डालती हैं ये कर्म ‘संस्कार’ ही प्रत्येक जन्म में संगृहीत (एकत्र) होते चले जाते हैं, जिससे कर्मों (अच्छे-बुरे दोनों) का एक विशाल भंडार बनता जाता है इसे ‘संचित कर्म’ कहते हैं।

अब जब व्यक्ति मरता है तो इन्हीं संचित कर्मों में इस जन्म के कर्म भी एकत्रित करके ले जाता है दरअसल, इन संचित कर्मों में से एक छोटा हिस्सा हमें नये जन्म में भोगने के लिये मिल जाता है इसे प्रारब्ध कहते हैं ये प्रारब्ध कर्म ही नये होने वाले जन्म की योनि व उसमें मिलने वाले भोग को निर्धारित करते हैं फिर इस जन्म में किये गये कर्म, जिनको क्रियमाण कहा जाता है, वह भी संचित संस्कारों में जाकर जमा होते रहते हैं।

2.क्या है स्मृति?

एक प्रतिशत भी लोग नहीं होंगे जो अपने पिछले जन्म की स्मृति को खोलकर यह जान लेते होंगे कि मैं पिछले जन्म में क्या था प्रत्येक व्यक्ति के पास अपने पिछले और इस जन्म की कुछ खास स्मृतियां संग्रहित रहती हैं यह स्मृतियां कभी भी समाप्त नहीं होती हैं।

भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन तुझे अपने अगले और पिछले जन्मों की स्मृति नहीं है लेकिन मुझे अपने लाखों जन्मों की स्मृति है लाखों वर्ष पूर्व भी तू था और मैं भी था किस जन्म में तू क्या था यह मैं जानता हूं और अगले जन्म में तू क्या होगा यह भी मैं जानता हूं क्योंकि मैं तेरे संचित कर्मों की गति भी देख रहा हूं।

अत: यह कहना होगा कि जब व्यक्ति जन्म लेता है तो वह अपने पिछले जन्म की स्मृतियां साथ लाता है लेकिन वह धीरे धीरे उन्हें भूलता जाता है भूलने का अर्थ यह नहीं कि वे स्मृतियां सदा के लिये मिट गईं वे अभी भी आपकी हार्ड डिस्क में है लेकिन वह रेम से हट गई है हार्ड डिस्क में कहीं सुरक्षित रखी है इसी तरह जब व्यक्ति मरता है तो वह इस जन्म की भी स्मृतियां बटोरकर साथ ले जाता है।

3.जागृति क्या है?

यह विषय थोड़ा कठिन है प्रत्येक मनुष्य और प्राणी के भीतर जाग्रति का स्तर अलग अलग होता है यह उसकी जीवन शैली, संवेदना और सोच पर निर्भर करता है आप में बेहोशी का स्तर ज्यादा है तो आप भावना और विचारों के वश में रहकर ही जीवन यापन करेंगे अर्थात आपके जीवन में भोग, संभोग और भावना ही महत्वपूर्ण होगी।

आप इसे इस तरह समझें कि आप में और पशुओं में क्या खास फर्क है?

आप कपड़े पहनते हैं और थोड़ा बहुत सोचते हैं लेकिन आप में वही सारी प्रवृत्तियां हैं जो कि एक पशु में होती है जैसे ईर्ष्या, क्रोध, काम, भूख, लालच, मद आदि सभी तरह की प्राथमिक प्रवृत्तियां इन प्राणियों को प्राणी इसलिए कहते हैं कि वह प्राण के स्तर पर भी जीते और मर जाते हैं उनमें मन ज्यादा सक्रिय नहीं रहता है

मनुष्य में मन ज्यादा सक्रिय रहता है इसलिए वे मन की भावना और विचारों में ही ज्यादा रमते हैं वे मानसिक हैं मन से ऊपर उठने से जाग्रति शुरू होती है जाग्रति की प्रथम स्टेज बुद्धि और द्वितीय स्टेज विवेक और तृतीय स्टेज आत्मावान होने में है प्रार्थना और ध्यान से जागृति बढ़ती है।

उक्त सभी को मिलाकर कहा जाता है कि व्यक्ति अपने साथ धर्म लाता है और धर्म ही ले जाता है।

शास्त्र लिखते हैं कि –

मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्टलोष्टसमं जना:।

मुहूर्तमिव रोदित्वा ततोयान्ति पराङ्मुखा:॥

तैस्तच्छरीमुत्सृष्टं धर्म एकोनुगच्छति।

तस्माद्धर्म: सहायश्च सेवितव्य: सदा नृभि:॥

इसका सरल और व्यावहारिक अर्थ यही है कि मृत्यु होने पर व्यक्ति के सगे-संबंधी भी उसकी मृत देह से कुछ समय में ही मोह या भावना छोड़ देते हैं और अंतिम संस्कार कर चले जाते हैं किंतु इस समय भी मात्र धर्म ही ऐसा साथी होता है, जो उसके साथ जाता है।

मनुस्मृति में भी लिखा है-

मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्टसमं क्षितौ ।

विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति ॥ 

मनु० २४१ ॥

नारद गीता में लिखा है –

न हि त्वां प्रस्थितं कश्चित् प्रष्ठतोsनुगमिष्यति ।

सुकृतं दुष्कृतं च त्वां यास्यन्तमनुयास्यति ॥

नारद गीता 

जब तुम परलोक की राह लोगे, उस समय तुम्हारे पीछे कोई नहीं जायेगा केवल तुम्हारा किया हुआ पुण्य या पाप ही वहां जाते समय तुम्हारा अनुसरण करेगा।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *