वाह रे पावर कार्पोरेशन,अनुभव हीन बडका बाबूओ की जागीर का खेल “पार्ट2
लखनऊ 10 फरवरी पाठक यह तो समझ गये कि किस तरह से इन अनुभवहीन बड़केबाबुओ ने इस विभाग पर कब्जा किया अब इसके आगे बडका बाबूओ ने तो इस विभाग को चलाने के लिए भ्रष्टाचारियो की एक फौज तैयार कर ली जो कि रोज नये नये फार्मूलो से इस विभाग को कैसे लूटा जा उसके नये नये सुझाव तैयार कर उनके सामने लाते है उनको सलाहकार बना कर नियुक्त कर दिया गया एक तरफ राज्य सरकार इनका सलाहकार नियुक्त करती है तो दूसरी तरफ यह बडका बाबूजी लोग बोर्ड मीटिग कर के यानि की औपचारिकता पूरी कर के उनको संवैधानिक रूप दे कर एक तरीके से महीना बाध दिया जाता है और उनको उनके काम की कीमत मिलती रहती है इसी तरह से नोएडा और आगरा को इन्ही चाटुकारो ने बडका बाबूओ के बताए गये तरीके से निजी हाथो मे सौप दिया । कुछ दिन तक तो विरोघ हुआ परन्तु चादी के जूते की सेवा ली गयी तो सारे विरोधी चुप हो गये थे ऐसा पूर्व मे परिषद से कार्पोरेशन या निगम बनाते समय भी हुआ था तगडा विरोध परन्तु उस समय भी चादी का जूता चला विरोधियो पर सब चुप उस समय एक नेता जी का किस्सा बडा मशहूर हुआ था जनाब जूता खा कर निकले तो निकलते समय वो कागज का लिफाफा ही फट गया जिसमे जूते रखे थे जनाब ने फौरन अपने कुर्ते का दामन फैला कर सारे जूते उसी मे बटोर लिए और वहा से मुंह छुपा कर चल दिए । वर्तमान समय मे बडका बाबूओ की अनुभवहीनता की कहानी तो और भी मजेदार है पहले लोग दाल मे नमक बराबर बेमानी करते थे अब तो नमक ही नमक है दाल ही गायब । पहले तो विभागीय युनियन के नेता लोग विरोध करते थे परन्तु इस समय तो सभी हाथ बाधे खडे हुए है क्यो कि बोलने पर अब चादी का जूता नही चलता अपितु अब तो खैफ का वातावरण है नेताओ के पुराने कारनामो की गठरी इन बडका बाबूओ के हाथ लग गयी है तो ज्यादा चू चपेड की या विरोघ प्रदर्शन किया तो नौकरी से ही हाथ धो लोगे । वैसे तो अनुभवहीन बड़केबाबुओ की कहानो तो अभी बहुत लम्बी है इन्तजार करे अगले अंक का । खैर
युद्ध अभी शेष है