एक झलक

विद्युत विभाग:आखिर क्या है मसला,सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है मामला,जाने किसका नुकसान किसका फ़ायदा,मरता कर्मचारी पिस्ता आम इंसान

लखनऊ 24 मार्च पूरे उत्तर प्रदेश को 65 घण्टे बिजली संकट से क्यो गुजरना पडा आखिरकार ऐसी कौन सी मागे है सयुंक्त संघर्ष समिती की जिसको सरकार पूरा नही कर सकती तो जानिए इस निष्पक्ष लेख से कि क्या मामला है पूरी पडताल समय का उपभोक्त राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र के साथ।
सन था 1999 उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य विद्युत परिषद को भंग कर उसे तीन कम्पनियो मे बाटा और बना दिए गये कार्पोरेशन जिसके विरोध मे एक बड़ा आन्दोलन हुआ हडताल भी हुई जेल भरो आन्दोलन भी चला और अंत मे सयुंक्त संघर्ष समिती और तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के बीच समझौता भी हुआ जिसमे यह तय हुआ कि इन तीनो कम्पनियो की समय समय पर समीक्षा की जाएगी अगर घाटा बढा तो इन तीन कम्पनियो को फिर से एक कर के राज्य विद्युत परिषद मे बदल जाएगा परन्तु कभी समीक्षा हुई ही नही और जो राज्य विद्युत परिषद जो वित्तीय वर्ष 1999 /2000 मे 77.47 करोड के घाटे मे था वो 2022 / 2023 मे एक लाख करोड के धाटे मे पहुच गया लेकिन बात यही नही है उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन और उसकी सहयोगी कम्पनियो मे भी बडा खेल हुआ जिसके प्रबन्धन मे यानि अध्यक्ष और प्रबंध निदेशको के पदो पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियो यानि बडका बाबूओ ने अवैध रुप से कब्जा कर लिया और नियमो को ताक पर रख कर फैसले लेने लगे जब कि कम्पनीयो के गठन के समय हुए गजट मे यह स्पष्ट तौर पर लिखा है कि अध्यक्ष व प्रबन्ध निदेशक व निदेशको को चयन प्रक्रिया के अन्तर्गत चयनित किया जाएगा । सन् 2000 मे गजट फिर 2006 मे उच्चतम न्यायालय ( सुप्रीम कोर्ट) मे शपथपत्र देना और फिर जब इसका भी अनुपालन 14 साल तक ना होने पर उपभोक्ता सरक्षण उत्थान समिती के द्वारा इस मामले को माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद मे जनहित याचिकाऐ दाखिल कर के फिर से उठाना पडा लेकिन न्याय मिलने मे समय लग रहा है न्यायालय मे तारीखे लग रही है। फिर इसी मुद्दे को ले कर सयुंक्त संघर्ष समिती प्रदेशव्यापी आन्दोलन करती है जिसके परिणामस्वरूप 3/12/2022 को ऊर्जा मंत्री के दिशा निर्देश अनुसार प्रबन्ध निदेशक पावर कार्पोरेशन व प्रबन्ध निदेशक पारेषण सयुंक्त संघर्ष समिती से मुख्य मंत्री के सलाहकार अवनीश अवस्थी की उपस्थिती मे लिखित समझौता करते है जिसके क्रियान्वयन के लिए ऊर्जा मंत्री का 15 दिनो का समय देना का सयुंक्त संघर्ष समिती से आग्रह करते है सहमती और दोनो पक्षो मे सहमती बन जाती है और लिखित समझौते पर दोनो पक्ष हस्ताक्षर करते है , लेकिन 15 दिनो की जगह धीरे धीरे 100 दिनो का समय बीत जाता है इस दौरान ऊर्जा मंत्रीऔर सयुंक्त संघर्ष समिती के बीच इस समझौते को लागू करने के लिए कई दौर की बातचीत भी होती है लेकिन लिखित समझौते का पालन ना करना और कई दौर की वार्ता के बाद भी समस्या का कोई हल ना निकलना मंत्री का पत्रकार वार्ता मे मेमोरेंडम आफ आर्टिकल लागू क्यो नही किया जाता ? इस प्रश्न के पूछे जाने पर लापरवाही भरा जवाब देना कि अध्ययन कर रहे है और तनाशाही पूर्ण रवैया अपनाते हुए 3500 सविदा कर्मियो को बर्खास्त करना और फिर ऊर्जा मंत्री का सयुंक्त संघर्ष समिती के साथ प्रेस मे सयुंक्त बयान जारी करना कि सारी fir व कार्यवाही वापस ली जाएगी लेकिन फिर भी कर्मचारियो और अधिकारियो पर लगातार कार्यवाही करना क्या यह सरकार की तानाशाही मंशा को जाहिर करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नही है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीगण इस मलाईदार कुर्सीयो से मात्र अपने स्वार्थवश चिपके हुए है जैसे पूर्व प्रबन्धनिदेशिका ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग द्वारा बनाई गयी नियमावली के विपरीत जा कर निविदाओ मे दो पक्षो मे सहयोग की नियमावली और वित्तीय नियमो को मानने से इनकार करने वाला आदेश पारित किया , बिना निविदा के स्मार्ट मीटर लगाने का समझौता कर लिया, और बिना निविदा निकाले ई आर पी जैसा साफ्टवेयर ऊचे दामो मे खरीदना यह तो बस बानगी भर है इन अवैध रूप से बैठै बडका बाबूओ की तानाशाहीपूर्ण कार्यशैली के । इनकी इस कार्यशैली की वजह से कार्पोरेशन का खर्च बढता है जिसकी वजह से घाटा बढता है और बिजली के दाम बढाने पडते है जिसका सीघा सा असर जनता के ऊपर आता है ,वर्तमान अध्यक्ष द्वारा पीएफ घोटाले मे वित्तीय वसूली के मनमाने आदेश जिसको उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किया , खुद की नियुक्ती अल्पकालीन या अस्थाई होने के बाद भी नियम विरुद्ध कई स्थाई कर्मचारियो की सेवा समाप्त करना ऐसे बहुत से उदाहरण आपको मिल जाएगे जो कि पूरी तरह से नियम विरुद्ध है । वितरण निगमो मे अवैध रूप से तैनात अस्थाई प्रबन्धनिदेशक द्वारा करोडो के वित्तीय फैसले कैसे लिए जा सकते है क्या इनको इस पद पर नियुक्त करते समय राज्यपाल द्वारा सम्पूर्ण शक्तिया प्रदान की गयी है ? क्यो कि नियमतः अस्थाई तौर पर नियुक्त व्यक्ति के पास वित्तीय फैसले लेने का कोई अधिकार हो नही होता लेकिन नियमो को ताक पर रख कर मौखिक आदेश के जरिए नियमानुसार चयन प्रक्रिया से चुने हुए निदेशको की सारी शक्तियो को भी अपने पास रखने के आदेश लगभग सभी वितरण निगमो के प्रबन्धनिदेशको ने दे रखे है जब कि ऐसा करने का उनके पास कोई अधिकार ही नही । अब इतना होने पर भी अगर कर्मचारी विरोध नही करेगे तो कब करेगे । जब विभागीय मंत्री प्रेसवार्ता कर के घोषणा करने के बाद भी मुकर जाता हो और अपने किये वादे के बाद भी कार्यवाही करने की इन अवैध रूप से नियुक्त बडका बाबूओ को छूट देदेता हो तब तो कर्मचारी संगठन आवाज तो उठाएगे क्या बिना मेमोरेंडम को पढे मंत्री जी ने समझौता करने का आदेश दे दिया था या फिर मंत्री जी को अपने पद की गरिमा का मान नही है ।

 

 

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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