एक झलक

श्राद्ध पक्ष में पिंडदान का क्या है महत्व

13सितम्बर 2022

वैदिक परंपरा और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान कार्य माना गया है मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अराद्ध पक्ष में पिंडदान का क्या है महत्वपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा पितृपक्ष में उनका विधिवत श्राद्ध करे।

आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन महीने की अमावस्या तक को पितृपक्ष कहा गया है मान्यता के अनुसार, पिंडदान, मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था पिंड, चावल और जौ के आटे, काले तिल तथा घी से निर्मित गोल आकार के होते हैं, जो अन्त्येष्टि में तथा श्राद्ध में पितरों को अर्पित किये जाते हैं।

आचार्यों के मुताबिक जनमानस में यह आम धारणा है कि एक परिवार से कोई एक ही ‘गया’ में पिंडदान करता है गरुड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर, जाने वालों का एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनता जाता है।

गया को विष्णु की नगरी माना गया है यह मोक्ष की भूमि कहलाती है विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से की गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया जब गयासुर धरती पर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया।

यही पांच कोस की जगह आगे चलकर गया बनी परंतु गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने (मुक्ति) वाला बना रहे जो लोग यहां पर किसी का तर्पण करने की इच्छा से पिंडदान करें, उनके पितरों की आत्मा को मुक्ति अवश्य मिले यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने और पिंडदान के लिए गया जाते हैं।
पिंडदान करना महापुण्य है यह न ही केवल एक परंपरा मानी गयी है, बल्कि पितरों की आत्मा की शांति और उनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए, एक कर्तव्य भी माना गया है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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