सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला,किस आधार पर एससी-एसटी एक्ट में दर्ज केस खारिज हो सकता है
नई दिल्ली26अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अगर किसी अदालत को लगता है कि SC/ST अधिनियम के तहत दर्ज कोई अपराध मुख्य रूप से निजी या दीवानी का मामला है या पीड़ित की जाति देखकर नहीं किया गया है तो वह मामले की सुनवाई निरस्त करने की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमण (CJI NV Raman) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘अदालतों को इस तथ्य का ध्यान रखना होगा कि उस अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 15, 17 और 21 में निहित संवैधानिक सुरक्षात्मक प्रावधानों के आलोक में बनाया गया था, जिसका उद्देश्य था कमजोर वर्गों के सदस्यों का संरक्षण करना और जाति आधारित प्रताड़ना का शिकार हुए पीड़ितों को राहत और पुनर्वास उपलब्ध कराना.’
पीठ ने कहा, ‘दूसरी तरफ अगर अदालत को लगता है कि सामने पेश हुए मामले में अपराध, भले ही SC/ST अधिनियम के तहत दर्ज किया गया हो, फिर भी वह मुख्य रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है या जहां कथित अपराध पीड़ित की जाति देखकर नहीं किया गया हो, या जहां कानूनी कार्यवाही कानून प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, ऐसे मामलों में अदालतें कार्यवाही को समाप्त करने की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकती हैं.’ न्यायालय ने यह टिप्पणी, अनुसूचित जाति/जनजाति (प्रताड़ना निवारण) अधिनियम के तहत दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने के दौरान की. शीर्ष अदालत मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने एससी / एसटी अधिनियम के तहत उसकी सजा को बरकरार रखा था.आरोपी और उसके पड़ोसी के बीच जमीन के एक टुकड़े के मालिकाना हक और मालिकाना हक को लेकर एक दिवानी विवाद में उस वक्त हालात बिगड़ गए जब उसने कथित तौर पर महिला पर न केवल एक ईंट फेंकी, बल्कि उसकी जाति पर गंदी और भद्दी टिप्पणी भी की. जिसके बाद उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई. बाद में उस व्यक्ति और अन्य सह-आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया, जिसके कारण उसे एससी/एसटी अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया और परिणामस्वरूप छह महीने के कठोर कारावास की सजा के साथ-साथ 1000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया. उस व्यक्ति ने अपनी सजा को उच्च न्यायालय में चुनौती दी लेकिन उसकी अपील खारिज कर दी गई.