19 अगस्त को मनायी जाएगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
वाराणसी17अगस्त: सनातन धर्म में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मान्यता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि में वृष राशि के चंद्रमा में हुआ था। भगवान विष्णु के दशावतारों में से सर्व प्रमुख पूर्णावतार सोलह कलाओं से परिपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण को माना जाता है जो द्वापर के अंत में हुआ था। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं.ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार जन्माष्टमी 19 अगस्त को मनाई जाएगी। गोकुलाष्टमी (उदयकाल में अष्टमी) भी मथुरा-वृंदावन में इसी दिन मनाई जाएगी। भाद्र पद कृष्ण अष्टमी तिथि 18 की अर्द्धरात्रि 12.14 बजे लग रही है जो 19 की मध्य रात्रि 1.06 बजे तक रहेगी। उदय व्यापिनी रोहिणी मतावलंबी वैष्णवों का श्रीकृष्ण व्रत 20 अगस्त को मनाया जाएगा। रोहिणी नक्षत्र 20 की भोर 4.58 बजे लग रहा है जो 21 अगस्त को प्रातः सात बजे तक रहेगा। वहीं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत का पारन 20 अगस्त को प्रातः किया जाएगा। यह सर्वमान्य पापघ्न व्रत बाल, कुमार, युवा, वृद्धा सभी अवस्था वाले नर-नारियों को करना चाहिए। इससे अनेकानेक पापों की निवृत्ति और सुखादि की वृद्धि होती है जो इस व्रत को नहीं करते उनको पाप लगता है। व्रतियों को चाहिए की उपवास से पहले दिन रात में अल्पाहार कर रात में जितेंद्रिय रहें। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म कर सूर्य, सोम, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रह्म आदि को नमस्कार कर उत्तराभिमुख बैठें। हाथ में जल-अक्षत, कुश-फूल लेकर मास, तिथि, पक्ष का उच्चारण कर संकल्प लें। संकल्प में मेरे सबी तरह के पापों का शमन व सभी अभीष्टों की सिद्धि के लिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करेंगे या करूंगी का संकल्प करें। मध्याह्न में काले तिल युक्त जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृह नियत करें। उसे स्वच्छ व सुशोभित कर सूतिका उपयोगी समस्त सामग्री यथा क्रम रखें। एक सुंदर बिछौना पर अक्षतादि का मंडल बनाकर कलश स्थापन करें। उसी पर सद्यः प्रसूत श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें। रात में भगवान के जन्म के बाद जागरण व भजन आदि करना चाहिए। इस व्रत को करने से पुत्र की इच्छा रखने वाली स्त्रियों को पुत्र, धन कामना वालों को धन, यहां तक की इस व्रत को करके कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। अंत में बैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।