काशी विद्यापीठ के 45वां दीक्षांत समारोह का किया शुभारंभ, 16 मेधावियों को गोल्ड मेडल दिए, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बोलीं- काशी विद्यापीठ असहयोग आंदोलन का जीवंत प्रतीक
वाराणसी 11 दिसंबर :राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महात्मगा गांधी काशी विद्यापीठ के45 वे दीक्षांत समारोह में सोमवार को मुख्य अतिथि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पहुंची। उन्होंने कलश में पानी डालकर दीक्षांत समारोह की शुरुआत की। इस दौरान 16 मेधावियों को गोल्ड मेडल दिए और डिग्री प्रदान की। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी रहीं।
इस मौके परराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा काशी के वैभव और यहां की संस्कृति का जिक्र किया. उन्होंने काशी को भारतीय संस्कृति की अहम धरोहर बताया और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुए यहां की परंपराओं का जिक्र किया. राष्ट्रपति ने 2024 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प में काशी विद्यापीठ के विद्यार्थियों और शिक्षकों की अहम भूमिका होने का विश्वास जताया.
साथ ही दीक्षांत समारोह में छात्राओं को छात्रों की तुलना में अधिक मेडल मिलने पर अपनी प्रसन्ना जाहिर की. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने काशी विद्यापीठ के दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में कहा कि 10 फरवरी 1921 को इस विद्यापीठ का उद्घाटन करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था जितने सरकारी विद्यालय हैं, उनमें हमें विद्या नहीं लेनी है. हम उस झंडे के नीचे नहीं रह सकते, जिसको सलाम करने के लिए हमारे छात्रों को मजबूर किया जाता है. उन्होंने कहा कि यदि हमारे विद्यालय खोलेंगे तो विद्या अपने आप पवित्र हो जाएगी. उन्होंने कहा कि यह विद्यापीठ असहयोग आंदोलन से उत्पन्न संस्था के रूप में हमारे महान स्वाधीनता संग्राम का जीवंत प्रतीक है.
काशी विद्यापीठ के नाम के पीछे स्वाधीनता संग्राम के प्रति सम्मान की भावना राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि काशी विद्यापीठ के प्रथम प्रबंधन बोर्ड के सदस्यों में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, जमनालाल बजाज, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य नरेंद्र देव और पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे इतिहास निर्माता शामिल थे. यहां के असाधारण अध्यापकों सूची में आचार्य नरेंद्र देव, डॉक्टर संपूर्णानंद आदि विद्वानों ने सदैव याद रखे जाएंगे. राष्ट्रपति ने कहा कि ब्रिटिश शासन की सहायता और नियंत्रण से दूर रहते हुए भारतीय संसाधनों से निर्मित काशी विद्यापीठ का नामकरण महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ करने के पीछे हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की भावना निहित है.