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विद्युत विभाग:कान में विरोध: UPPCL में प्रचलित व्यवस्था: भ्रष्टाचारी मस्त,शिष्टाचारी त्रस्त

वाराणसी 4 जून: पिछले दिनों एक समाचार पत्र में खबर छपी जिसका शीर्षक था,कान में विरोध। शीर्षक सचमुच चौकाने वाला था,उससे आगे पड़ने पर पता चला कि वह कान फेस्टिवल के दौरान हुए विरोध से जुड़ी ख़बर थी,शीर्षक पढ़ कर कुछ और समझ मे आ रहा था।
वैसे ख़बर विद्युत विभाग में वर्तमान के माहौल में फिट हो रहा है चाहे भ्रष्टाचार के मुद्दे हो, विभागीय प्रमोशन के मुद्दे हो,कर्मचारियों के द्वारा की गई हड़ताल का मुद्दा हो या संघर्ष समिति के विरोध में उतरे कुछ संगठनो के विरोध का मुद्दा हो।
आजकल ये दो शब्द ही किसी मुद्दे में निष्कर्ष के लिए पर्याप्त है,बशर्ते आप शब्दों की जादूगरी जानते हो, बिजली विभाग में कॉरपोरेशन से लेकर डिस्कॉम मुख्यालय, वितरण क्षेत्रो, वितरण मंडलो औऱ वितरण खंडों में ऐसे अच्छे खासे अधिकारी/कर्मचारी माहिर है औऱ नारद मुनि की भूमिका में देखे जा सकते है औऱ देखे जा रहे है।
नारद मुनि तो कल्याण के लिए स्वतः ये रूप धारण करते थे,परंतु विभाग में अपनी सत्ता कायम रखने,अपने विराधियो को निपटाने औऱ भ्रष्टाचार को क़ायम रखने के लिए कुछ तो बाकायदा नियुक्त हुए तो कुछ स्वाम लालयालित रहते है।
कान में विरोध के जब किसी को आमंत्रित किया जाता है तो ऐसा काम स्वम् के जोख़िम पर होता है आमंत्रित किसी के विरोध में भी बोल सकता है,बवाल बढ़ने पर वह यह भी कह सकता है कि मेरा यह मतलब नही था। मेरे शब्दों को गलत प्रस्तुत किया गया है या वो कह सकता है कि मैंने ऐसा नही कहा। परंतु तब तक उसका मतलब पूरा हो चुका होता है।
संभवतः कुछ ऐसा ही संघर्ष समिति की हड़ताल के दौरान हुआ हो सकता है जब सारे संगठन विरोध में थे तो कान को कुछ संगठनो द्वारा संघर्ष समिति के विरोध में कान के कान भर दिए गए होंगे जिसकी वज़ह से वार्ता की टेबल पर निपटने वाला मामला हड़ताल तक पहुँच गया।
पर विभाग में विरोध करने वालो का सार्वजनिक सम्मान होने लगा जैसे मनमानी पोस्टिंग, प्रमोशन, नियुक्ति आदि तब से सार्वजनिक सम्मान से सुरक्षित दूरी बना कर कान में विरोध दर्ज करने का फैशन चलन में आ गया है।
वैसे विभाग में आमंत्रितो को विरोध करने के लिए कुछ ज्यादा ही हिम्मत चाहिए। इसलिए आजकल विरोध का रास्ता कान से हो कर गुज़रता है। अगर कान आमंत्रितों के बिल्कुल निकट है तो आमंत्रितों को ज्यादा ज़हमत उठाने की जरूरत नही है तब आमंत्रित अपना विरोध फुसफुसा सकते है। जिसका प्रमाण आजकल कारपोरेशन मुख्यालय में फोटो शूट में देखा जा सकता है।
फुसफुसाने में एक सुगमता औऱ हैं कि कान से विरोध का रास्ता सीधे व्यक्ति के दिमाग मे जाता है। छोटे मोटे आमंत्रित भी मौका मिलने पर कान में विरोध आसानी से दर्ज कर सकते है वे लोग मानते है कि कान के रास्ते विरोध एक कान से दूसरे कान तक होता हुआ एक न एक दिन अपने गंतव्य असली कान तक पहुँच ही जाता है जिसकी सुरुवात एक दिन की जा चुकी है। कारपोरेशन मुख्यालय तक विरोध कान तक पहुचाने के लिए डिस्कॉमो में ऐसा रास्ता प्रचलित है।
अनुभवी लोग बताते है कि कान में विरोध का मज़ा ही कुछ और होता है शायद इसी लिए विभाग में कान में विरोध की खबरे अक्सर आती जाती रहती है औऱ आमंत्रितो का खुलासा होता रहता है।
हालांकि विभाग में कुछ ऐसे भी लोग है जिनके कान पर जू तक नही रेंगती है आप चाहे जो कहते रहे,वे आपकी बात पर कान धरने को भी राजी नही होते है। यदि वे एक कान से सुनते है तो दूसरे कान से निकाल देते है। ऐसे लोगो के कान में विरोध कर करना वैसे ही होता है जैसे बहरे के कान में विरोध करना। जैसा कि ग्रामीण मंडल, में भ्रष्टाचार की खबरों में होता रहा है।
विभाग में कुछ लोग कान के कच्चे है ऐसे लोग से कान में विरोध का जोखिम मोल नही लेना चाहिए। आपकी बात सुनते ही उनके कान खड़े हो सकते है भूल कर भी ऐसे लोगो के कान में विरोध नही फूंकना चाहिए। विभाग में ऐसे लोगो की भरमार है।
विभाग में कुछ लोग ऐसे भी है जो कान में तेल डाल कर बैठे रहते है। उनके कानों में ऐसी विरोध भरी बातों का कोई असर नही होता है। हाँ आपके विरोध से उनके कान अचानक खुल सकते है औऱ व नाराज़ हो कर आपसे कह सकते है कि आप औऱ ज्यादा कान न पकाओ। ऐसे लोगो के कान में विरोध दर्ज करने का यह परिणाम भी हो सकता है कि आप के विरोध से उनके कान फटने लग जाये औऱ फिर वे आप के बारे में दूसरों के कान खोलने में लग जाये। जैसा की बिजली विभाग में क्षेत्रो/मंडल/खंडों के भ्रष्टाचार की खबरों पर होता रहा है।
अंत मे एक बात औऱ कहते है कि दीवारों के भी कान होते है,यदि आप बगैर जोख़िम लिए चुपचाप विरोध दर्ज कराने के शौकीन है तो बहरे के कान के बजाय दीवारों के कान में अपना विरोध दर्ज करा सकते है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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