पूर्वांचल

नवरात्रि का सातवां दिन मां दुर्गा का सप्तम स्वरुप मां कालरात्रि के दर्शन का विधान,मां के दर्शन के लिए भक्तों की लम्बी कतारे लगते रहे जयकारे

वाराणसी28मार्च, चैत्र नवरात्र की सप्तमी तिथि पर देवी कालरात्रि के दर्शन-पूजन का विधान है। मां अंधकार का नाश व काल से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। काशी में मां का मंदिर श्री काशी विश्वनाथ धाम के समीप कालिका गली में स्थित है। मां को भोर में पंचामृत स्नान के बाद फूल-माला से भव्य श्रृंगार किया गया। मंगला आरती के बाद माता के मंदिर का पट श्रद्धालु भक्तों के दर्शन के लिए पट खोल दिया गया। भोर से ही मां के दर्शन-पूजन के लिए भक्तों की लम्बी कतारे लगी है। देवी अपने भक्तों को भय और बाधाओं से मुक्त करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के सातवें दिन शक्ति की अधिष्ठात्री मां जगदंबा के सप्तम स्वरूप मां कालरात्रि के दर्शन पूजन से विशेष फल मिलता है। काल का विनाश करने वाली माता शक्ति के कारण मां को कालरात्रि कहा गया। मां कालरात्रि का स्वरूप विकराल किंतु अत्यंत शुभ है।
मान्यता है कि मां कालरात्रि अकाल मृत्यु से बचाने वाली और भय बाधाओं का विनाश करने वाली हैं। मां कालरात्रि का रंग गहरा काला है और केश खुले हुए हैं। मां गन्धर्व पर सवार रहती हैं। माता की चार भुजाएं हैं। उनके एक बाएं हाथ में कटार और दूसरे बाएं हाथ में लोहे का कांटा है। वहीं एक दायां हाथ अभय मुद्रा और दूसरा दायां हाथ वर मुद्रा में रहता है। माता के गले में मुंडों की माला होती है। इन्हें त्रिनेत्री भी कहा जाता है। माता के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं। जो भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता का दर्शन पूजन करता है उसे सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। वहीं मां उसकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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