एक झलक

गोवर्धन पूजा वाले दिन क्यों लगता है श्री कृष्ण को 56 भोग ?

5नवम्बर2021

भगवान श्री कृष्ण मनुष्य रूप में पृथ्वी पर आये थे, और भक्तों के बीच मनुष्य रूप में आज भी मौजूद हैं इसलिए कृष्ण की सेवा मनुष्य रूप में की जाती है। सर्दियों में इन्हें कंबल और गर्म बिस्तार पर सुलाया जाता है. उष्मा प्रदान करने वाले भोजन का भोग लगाया जाता है।

भगवान को लगाए जाने वाले भोग की बड़ी महिमा है। इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं जिसे छप्पन भोग कहा जाता है। यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर ख़त्म होता है।

छप्पन भोग की कथा ———

भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं। हिन्‍दू मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्‍ण एक दिन में आठ बार भोजन करते थे। जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया ।

दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके भक्तों के लिए कष्टप्रद बात थी। भगवान के प्रति अपनी अन्‍न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए व्रजवासियों ने सात दिन और आठ प्रहर का हिसाब करते हुए 56 प्रकार का भोग लगाकर अपने प्रेम को प्रदर्शित किया। तभी से भक्तजन कृष्ण भगवान को 56 भोग अर्पित करने लगे।श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हो। श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी. व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया।

छप्पन भोग का अर्थ है छप्पन सखियां

ऐसा भी कहा जाता है कि गौ लोक में भगवान श्रीकृष्‍ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतें होती हैं। प्रथम परत में आठ, दूसरी में सोलह और तीसरी में बत्तीस पंखुड़िया होती हैं। प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान विराजते हैं। इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्‍पन होती है. 56 संख्या का यही अर्थ है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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