पूर्वांचल

पहली बार कोतवाल की वर्दी में दिखे काशी के काल भैरव, मोदी-योगी भी हैं बाबा के भक्त

वाराणसी10जनवरी:काशी के कोतवाल कहे जाने वाले काल भैरव ने इतिहास में पहली बार असल में कोतवाल की वर्दी पहनी। कोतवाल की वर्दी पहने काल भैरव की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रही हैं। वाराणसी आने वाला हर अधिकारी पद ग्रहण करने से पहले काल भैरव के मंदिर में जरूर हाजिरी लगाता है।

प्रधानमंत्री मोदी और सीएम योगी भी काल भैरव के भक्त हैं। पीएम-सीएम कई बार काल भैरव के मंदिर में मत्था टेकने पहुंच चुके हैं। पिछले महीने विश्वनाथ धाम का लोकार्पण करने से पहुंचे पीएम मोदी ने सबसे पहले काल भैरव के यहां हाजिरी लगाई थी और उनसे इजाजत लेने के बाद विश्वनाथ मंदिर पहुंचे थे। सीएम योगी पिछले ही हफ्ते यहां पहुंचे और पीएम मोदी की दीर्घायु के लिए कामना और अनुष्ठान किया था।

बनारस की सकरी गलियों में स्थित काल भैरव मंदिर की आस्था अलग ही किस्म की है। इलाके के थाने में ऑफिसर की कुर्सी पर भी काल भैरव ही विराजते हैं। थानेदार की कुर्सी पर काल भैरव की तस्वीर रखकर अधिकारी उसके बगल में कुर्सी लगाकर बैठते हैं। थाने की जिम्मा काल भैरव के हाथों में होने के कारण कभी इस पुलिस स्टेशन का निरीक्षण किसी अधिकारी ने नहीं किया। यहां से जुड़ी कई परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां कोई भी थानेदार जब नियुक्त होता है तो वो अपनी कुर्सी पर नहीं बैठता। कोतवाल की कुर्सी पर हमेशा काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव विराजते हैं।

क्राइम कंट्रोल के साथ-साथ सामाजिक मेल-मिलाप, आने-जाने वालों पर बाबा खुद नजर बनाए रखते हैं। वो शहर के रक्षक हैं। इसीलिए इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। बाबा की पूजा के बाद ही यहां तैनात कोई पुलिसकर्मी काम शुरू करता है। ऐसा माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ ने पूरी काशी नगरी का लेखा-जोखा का जिम्मा काल भैरव बाबा को सौंप रखा है। शहर में बिना काल भैरव की इजाजत के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता। शहर की सुरक्षा के लिए थानेदार की कुर्सी पर बाबा काल भैरव को विराजा गया है। इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की, ये कोई नहीं जानता। लेकिन माना जाता है कि अंग्रेजों के समय से ही ये परंपरा चली आ रही है।

बाजीराव पेशवा ने कराया था जीर्णोद्वार

साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। वास्तुशास्त्र के अनुसार बना यह मंदिर आज तक वैसा ही है। काल भैरव मंदिर में रोजाना 4 बार आरती होती है। रात की शयन आरती सबसे प्रमुख है। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। मगर उस दौरान पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। एक अखंड दीप हमेशा जलता रहता है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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