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गुप्त नवरात्रि आज से 18 फरवरी तक,शनिवार को तीन बड़े योग में शुरू हो रहा है देवी आराधना का पर्व

वाराणसी 10 फरवरी :10 से 18 फरवरी तक माघ महीने की नवरात्रि रहेगी। इस बार गुप्त नवरात्रि शनिवार से शुरू हो रही है। इस दिन बृहस्पति, चंद्रमा से चौथी राशि में रहेगा। इससे गजकेसरी नाम का राजयोग बन रहा है। वहीं, सूर्य और बुध एक राशि में होने से बुधादित्य योग बनाएंगे। इनके साथ पर्वत योग भी बन रहा है। इन तीन योगों में नवरात्रि का शुरू होना बहुत शुभ माना जा रहा है।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि कई बार तिथियों की गड़बड़ी से नवरात्रि के दिन कम हो जाते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। जिससे देवी आराधना के लिए पूरे नौ दिन मिलेंगे। इन दिनों में दस महाविद्याओं की पूजा करने की परंपरा है। जिसे किसी के सामने नहीं किया जाता है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्र कहा जाता है।

तंत्र साधना और गोपनीय पूजा

गुप्त नवरात्र में देवी की दस महाविद्या की पूजा होती है। इन दिनों में आराधना का विशेष महत्व है और साधकों के लिए ये विशेष फलदायक है। सामान्य नवरात्रि में आमतौर पर सात्विक और तांत्रिक पूजा दोनों होती है, वहीं गुप्त नवरात्रि में ज्यादातर तांत्रिक पूजा ही की जाती है।
इन दिनों आमतौर पर ज्यादा प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता, अपनी साधना को गोपनीय रखा जाता है। माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होगी, सफलता भी उतनी ही ज्यादा मिलेगी।

दस महाविद्याएं, देवी के ही दस रूप

देवी दुर्गा की गुप्त साधना और तंत्र-मंत्र साधना के लिए गुप्त नवरात्रि में देवी काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, ध्रूमावती, बगलामुखी, मातंगी और माता कमला की पूजा की जाती हैं।
ये ही दश महाविद्याएं हैं। विद्वानों का कहना है कि इनकी पूजा और साधना से हर तरह की परेशानी दूर होती है और मनोकामना भी पूरी हो जाती है।

मानसिक शुद्धि का उत्सव

गुप्त नवरात्र आध्यात्मिक रूप से भी खास है। ये पर्व आत्मिक और मानसिक शुद्धि का उत्सव है। इसे चेतना का पर्व भी कहा जाता है। इन नौ दिनों में व्रत-उपवास के साथ ही नियम और संयम का पालन किया जाता है।
ऐसा करते हुए अपने मन और इंद्रियों को काबू में रखा जाता है। जिससे मन पवित्र रहता है और ब्रह्मचर्य का पालन होने से बुद्धि और चेतना भी बढ़ती है।

महाकाल संहिता में बताए 4 नवरात्र

साल में दो बार गुप्त नवरात्रि आती है। पहली माघ शुक्लपक्ष में और दूसरी आषाढ़ शुक्लपक्ष में। इस तरह सालभर में कुल चार नवरात्र होते हैं। यह चारों ही नवरात्र ऋतु परिवर्तन के समय मनाए जाते हैं।
महाकाल संहिता और तमाम शाक्त ग्रंथों में इन चारों नवरात्रों का महत्व बताया गया है। इनमें विशेष तरह की इच्छा की पूर्ति तथा सिद्धि प्राप्त करने के लिए पूजा और अनुष्ठान किया जाता है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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