महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में प्रोफेसर परमानंद जी की छठी पुण्यतिथि पर संगोष्ठी का आयोजन
वाराणसी 13अगस्त : इतिहास विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ द्वारा प्रोफेसर परमानंद जी की छठी पुण्यतिथि पर “बौद्ध धर्म एवं प्रोफेसर परमानंद” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉक्टर के सिरी सुमेध थेरो, अध्यक्ष इंडो श्री लंका इंटरनेशनल बुद्धिस्ट एसोसिएशन सारानाथ, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर जयप्रकाश लाल, पूर्व विभागाध्यक्ष, अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग,काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी, विशिष्ट अतिथि राधे मोहन पूर्व सांसद गाजीपुर रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने किया। कार्यक्रम में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की कुलसचिव डॉ सुनीता पांडे भी उपस्थित रही। इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी की संयोजिका प्रोफ़ेसर जयाकुमारी आर्यन ने सभी मुख्य अतिथियों एवं विशिष्ट अतिथियों का स्वागत संबोधन दिया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन प्रो दिवाकर लाल श्रीवास्तव ने किया उन्होंने कहा कि प्रो परमानंद का प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ अध्ययन के प्रति लगाव एवं बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठा पर जिक्र किया।
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि राधे मोहन सिंह, पूर्व सांसद, गाज़ीपुर रहे। उन्होंने कहा कि बुद्ध की चर्चा में ही राम की सनातन धर्म की चर्चा है। दुनिया ने युद्ध दिया हमने बुद्ध दिया। आज विकास बहुत हो रहा है परंतु आज मानवता,धर्म,कल्याण,दयालुता की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जीवन के बारे में सोचो, मृत्यु के बारे में नहीं। हमारे दुख का कारण है तृष्णा। किसी सिद्धांत को सीख कर अगर अपने जीवन में उतार नहीं पा रहे हैं तो वह शिक्षा बेकार है। उन्होंने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में सबसे ज्यादा कार्य महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में हुए हैं। पूरे विश्व के पैमाने पर अगर आज हम देखे तो विकास में हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं लेकिन मानवता में अभी भी हमको बहुत कुछ करना है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर जे पी लाल,पूर्व विभागाध्यक्ष, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने अपने वक्तव्य में कहा कि समाजवादी विचारधारा से जुड़े प्रोफेसर परमानंद सिंह ने 1978 से 2011 तक महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अध्यापन कार्य किया। 1972 में यहां के छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। प्रोफ़ेसर सिंह 1999 से 2008 तक इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर भी रहे।उन्होंने बौद्ध दर्शन पर कई पुस्तकें लिखी हैं।उन्होंने कहा कि कर्म ही जीवन में सुख और दुख लाता है। सभी कर्म चक्रों से मुक्त हो जाना ही मोक्ष है।कर्म से मुक्त होने एवं ज्ञान प्राप्ति हेतु मध्यम मार्ग अपनाते हुए व्यक्ति को चार आर्य सत्य को समझते हुए अष्टांग मार्ग का अभ्यास करना चाहिए। यही मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रोफेसर के श्री सुमेध थेरो ने कहा कि परमानंद जी जैसा व्यक्ति पूरी दुनिया में ढूंढना मुश्किल है। इस देश का धर्म आर्य धर्म है और इसको चलाने वाला मार्ग आर्य मार्ग है। बुध के साथ परमानंद जी का नाम कभी अलग नहीं हो सकता। चार आर्य सत्य इत्यादि सभी चीज परमानंद है ।आधुनिक समाज में बुद्ध धर्म के साथ परमानंद जी का नाम उसी तरह है जैसे प्राचीन काल मे बिंबिसार,अशोक का था। आप ने कहा कि भारत बिना बुद्ध के नहीं चलेगा। परमानंद जी ने बुद्धत्व के महत्व को एक विशेष रूप प्रदान किया।उन्होंने कहा कि यह बहुत ही हर्ष की बात है कि उनकी पुण्यतिथि पर इस तरह के कार्यक्रम इतिहास विभाग द्वारा किए जा रहे हैं और आगे भी यह कार्यक्रम होते रहने चाहिए।इसके पश्चात प्रोफेसर परमानंद सिंह के अनेक मित्रों और शिष्यों ने भी अपने विचार रखें। जिसमें प्रोफेसर प्रवेश भारद्वाज, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, डॉक्टर सीमा मिश्रा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, डॉक्टर गोपाल यादव,डॉक्टर अभिषेक पांडे, वेद प्रकाश सिंह, शमशेर बहादुर सिंह, श्री सुबोध राम आदि ने अपने संस्मरण को सभी के समक्ष रखा।
इतिहास विभाग के वरिष्ठ आचार्य प्रोफेसर आनंद शंकर चौधरी ने कहा कि प्रोफेसर परमानंद जी द्वारा स्थापित बौद्ध अध्ययन केंद्र एवं बौद्घआकर ग्रंथ माला को आगे बढ़ाना ही सही मायने में उनको सम्मान देना है।इस तरह से अपनी बात को रखते हुए उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ अंजना वर्मा ने किया। संगोष्ठी में इतिहास विभाग के अध्यापक डॉक्टर वीरेंद्र प्रताप, डॉक्टर गोपाल यादव, डॉक्टर शैलेश कुमार, डॉक्टर अलका डॉक्टर अंजु, डॉक्टर अर्चना गोस्वामी, डॉक्टर मनोज सिंह, डॉक्टर अनिरुद्ध कुमार तिवारी एवं विभिन्न कॉलेजों से आए डॉ अभिषेक पांडे, डॉक्टर मुकेश प्रताप सिंह, डॉक्टर कमलेश तिवारी, श्री पन्ना लाल आदि उपस्थित रहे।