योगी सरकार 2.0 में दिखेगा दलित-पिछड़ों का ‘डबल इंजन’, मंत्रिमंडल में पिछली बार की तुलना में भागीदारी बढ़ना तय
लखनऊ22मार्च:उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के दोबारा सत्ता में आते ही यह अटकलें जोर पकड़े हुए हैं कि योगी आदित्यनाथ के नए मंत्रिमंडल में कौन-कौन जगह पाएगा। चुनाव जीतने वालों में तमाम विधायक बड़े कद के हैं, जो पहले भी मंत्री रहे हैं। उनमें से अधिकांश की दूसरी पारी पर संदेह कम ही है। इसके साथ ही यह भी लगभग तय है कि इस बार योगी मंत्रिमंडल में दलितों और पिछड़ों का ‘डबल इंजन’ ज्यादा बड़ा लगाया जाएगा। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लगभग तय है कि पिछली सरकार की तुलना में इस बार इन वर्गों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी।
विधानसभा चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि भाजपा के साथ पिछड़ा वोट बैंक अब भी मजबूती से जुड़ा है तो बसपा से छिटककर दलित वोट अच्छी मात्रा में आ चुका है। यही कारण है कि बसपा 403 में से मात्र एक ही सीट जीत सकी, जबकि भाजपा अकेले 255 और गठबंधन सहयोगियों के साथ कुल 273 सीटें जीती है। भाजपा गठबंधन से पिछड़ा वर्ग के 89, अनुसूचित जाति के 63 और अनुसूचित जनजाति के दो विधायक हैं।इसके साथ ही पार्टी ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। लिहाजा, माना जा रहा है कि योगी मंत्रिमंडल का गठन इसी रणनीति के साथ होगा कि पिछड़े भाजपा को बढ़ाने में फिर आगे रहें और दलित भी साथ जुड़ा रहे। चूंकि कुल जीते विधायकों में 56 प्रतिशत दलित-पिछड़ा वर्ग से हैं, ऐसे में तय है कि इन दो वर्गों से चुनकर आए विधायकों को मंत्रिमंडल में तरजीह मिलेगी।योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल के संभावित नामों को लेकर तमाम नाम इंटरनेट मीडिया पर चल रहे हैं। इनमें से कुछ की चर्चा को तो समीकरणों का भी बल मिल रहा है। मसलन, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए हैं, लेकिन वह पिछड़ों के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं। उनका यह भी प्रभाव माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने के बावजूद वह वोटबैंक भाजपा के साथ रहा। ऐसे में केशव इसी पद पर दूसरी पारी शुरू कर सकते हैं। पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद भी उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाए जाने से इस बात की संभावना और बढ़ गई है।