राजनीति

राशन पर बवाल कांग्रेस बोली- कुर्की-वसूली का डर दिखा जबरन पेट पर लात मारने की तैयारी

22मई2022

नए नियमों के तहत राशन कार्ड के पात्र, मात्र वही लोग होंगे, जिनकी खुद की जमीन न हो। उनके पास पक्का मकान न हो, भैंस, बैल, ट्रैक्टर ट्रॉली न हो। साथ ही उस व्यक्ति के पास मोटरसाइकिल न हो और वह मुर्गी पालन व गौ पालन न करता हो। साथ ही, उसे शासन की ओर से कोई वित्तीय सहायता न मिलती हो उत्तर प्रदेश में राशन कार्ड के लिए कुर्की से लेकर मुकदमा तक दर्ज करने की बात पर कांग्रेस पार्टी ने विरोध जताया है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने शनिवार को अपने वक्तव्य में कहा, भाजपा का असली चाल, चरित्र और चेहरा एक बार फिर लोगों के सामने आ चुका है। भाजपा के सभी नेता और खुद प्रधानमंत्री ये बार-बार जताने से नहीं चूकते कि कैसे उन्होंने आपातकाल के दौरान मुफ्त राशन बांटा, लेकिन असलियत तो ये है कि लोगों को दो जून की रोटी भी चुनावों को ध्यान में रखकर दी गई थी। अब जबकि चुनाव खत्म हो गए हैं तो लोगों के पेट पर लात मारने की तैयारी भी पूरी हो चुकी है। उत्तर प्रदेश सरकार, कुर्की की धमकी देकर, वसूली का डर दिखाकर जबरन राशन कार्ड वापस ले लेगी। उन अफसरों का क्या होगा, जिन्होंने तथाकथित अपात्रों को राशन कार्ड दिए थे। इतना ही नहीं, यह वसूली भी बाजार के दाम पर होगी। सुप्रिया श्रीनेत ने उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ दस्तावेज साझा किए हैं। इनमें से कुछ दस्तावेज तो जिला आपूर्ति अधिकारियों और जिलाधिकारियों की ओर से जारी किए गए हैं। बतौर श्रीनेत, इनमें साफ तौर से कहा गया है कि नए नियमों के तहत राशन कार्ड के पात्र, मात्र वही लोग होंगे, जिनकी खुद की जमीन न हो। उनके पास पक्का मकान न हो, भैंस, बैल, ट्रैक्टर ट्रॉली न हो। साथ ही उस व्यक्ति के पास मोटरसाइकिल न हो और वह मुर्गी पालन व गौ पालन न करता हो। उसे शासन की ओर से कोई वित्तीय सहायता न मिलती हो। उसका बिजली का बिल न आता हो। उसके पास जीविकोपार्जन के लिए कोई आजीविका का साधन न हो। मतलब गरीबी दूर करने की बजाय मोदी सरकार में गरीब बने रहने में ही फायदा है। ऐसे तमाम मानक के चलते अपात्र घोषित कर लोगों के राशन कार्ड तुरंत निरस्त कर दिए जाएंगे। अगर यह तथाकथित अपात्र स्वयं राशन कार्ड नहीं दे देते हैं, तो इनसे कोरोना जैसी महामारी के दौरान दिए हुए राशन की वसूली और कुर्की तक की जाएगी। कांग्रेस प्रवक्ता के मुताबिक, दिक्कत सिर्फ तथाकथित फर्जी राशन कार्ड को लेकर ही नहीं है, असल मुद्दा तो सरकार की निर्ममता और क्रूरता का है। 84 फीसदी लोगों की इस देश में आय कम हो गई है, लोगों की नौकरियां चली गई हैं। महंगाई से लोगों की कमर टूट रही है। ऐसे समय में यह निर्णय लिया गया है कि कोई भी राशन कार्ड वाला व्यक्ति अगर अपात्र पाया जाता है, तो उससे वसूली छोटे-मोटे दाम पर नहीं बल्कि 24 रुपये प्रति किलो गेहूं, 32 रुपये प्रति किलो चावल पर होगी। यही नहीं नमक, दाल और खाने के तेल की वसूली तो बाजार के रेट पर होगी। ऐसे में एक सवाल जरूर कौंधता है कि कोरोना काल के दौरान जब लोगों की नौकरियां चली गईं, जब भुखमरी पैर पसार रही थी, तो दरवाजे पर खड़ी उस मोटरसाइकिल का क्या फायदा था। आखिर भाजपा सरकार, लोगों को अपने जुमलों से कब तक ठगती रहेगी। सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, एक और बड़ा सवाल है कि लोगों को तो आप कुर्की की धमकी देकर, वसूली का डर दिखाकर राशन कार्ड जबरन वापस ले लेंगे, लेकिन उन अधिकारियों का क्या होगा, जिन्होंने तथाकथित अपात्रों को राशन कार्ड दिए थे। उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होगी। क्या वे भाजपा और शासन की मिलीभगत थी। चुनावों के पहले तो खूब राशन कार्ड बांटे गए, खूब ढिंढोरा पीटा गया और अब चुनावों के बाद ये सरकार वसूली पर उतर आई है। 2013 का खाद्य सुरक्षा कानून साफ तौर से यह अंकित करता है कि उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 79.5 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 64.4 फीसदी लोगों को खाद्य सुरक्षा का फायदा पहुंचना चाहिए। भारत सरकार की तरफ से जारी अप्रैल 2022 के फूड ग्रेन बुलेटिन के अनुसार उत्तर प्रदेश में 15.20 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राशन मिलना चाहिए। तो अब सवाल ये भी है कि आखिर कितने लोगों को राशन दिया गया। राशन कार्डों को निरस्त करने की जो प्रक्रिया चल रही है, इससे कितने लोग खाद्य सुरक्षा के फायदे से वंचित हो जायेंगे। क्या उत्तर प्रदेश की सरकार, जो खाद्य सुरक्षा अधिनियम की कानूनी जरूरत है, उतने लोगों को खाद्य सुरक्षा देने का प्रबंध कर रही है। यह मानक राशन कार्ड देते वक्त इस्तेमाल किए गए थे। क्या मानक राशन कार्ड देने के बाद बदले गए हैं। तथाकथित गलत राशन कार्ड दिए जाने पर पहली कार्रवाई अधिकारियों के खिलाफ क्यों नहीं की गई, जिन्होंने अपात्रों को राशन कार्ड दिया। अगर अपात्रों के पास राशन कार्ड से राजस्व को नुकसान हुआ है, तो अधिकारियों की क्या जवाबदेही होगी। अगर आपकी अपात्रों वाली बात सच भी है तो चुनाव के पहले कार्यवाही क्यों नहीं हुई। कानूनी आवश्यकता राशन कार्ड निरस्त होने से कितने लोग खाद्य सुरक्षा के फायदे से वंचित हो जायेंगे। क्या उत्तर प्रदेश की सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम की कानूनी आवश्यकता (ग्रामीण क्षेत्रों में 79.5 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 64.4 फीसदी) को पूरा करेगी। क्या जनहितकारी योजनाएं चुनाव देखकर तय की जाएंगी। अगर ऐसा होगा तो चुनी हुई सरकारों की विश्वसनीयता, उनकी नीयत और नीति पर लगातार सवाल उठेगा। चुनाव के पहले जो लोग फ्री राशन बताने से नहीं चूकते थे, अनाज के झोलों पर अपनी तस्वीरें छपवा कर लोगों को लुभाते थे। भारत की जनता पर एहसान लादने का एक भी मौका नहीं छोड़ते थे। आज चुनाव खत्म होते ही करोड़ों लोगों के मुंह से निवाला छीनने पर क्यों आमादा हो गए हैं। क्या लोगों का पेट सिर्फ वोटों के लिए भरा जा रहा था।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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