वाह रे पावर कार्पोरेशन वाह,उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के धाटे का जिम्मेदार कौन
लखनऊ 17 नवंबर आज कल उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन मे सयुंक्त संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के आर्टिकल आफ मेमोरेंडम को लागू करने के लिए सरकार व प्रबन्ध को नोटिस दे चुकी है आखिरकार ऐसा क्या है मेमोरेंडम आफ आर्टिकल मे जो सभी श्रमिक सगठन इसके पक्ष मे एक साथ लामबंद हो कर आवाज उठा रहे है तो इसके पीछे की कहानी यह है है कि सन 2000 मे उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद को भंग कर कम्पनी ऐक्ट मे रजिस्ट्रेशन कर के परिषद को कम्पनी बना दी गयी थी जिसके बाद एक मेमोरेंडम आफ आर्टिकल के द्वारा जिसमे यह लिखा था कि चयन प्रक्रिया के माध्यम से चेयरमैन प्रबंध निदेशको और निदेशको का विज्ञापन के माध्यम से आवेदन प्राप्त दे कर चयन प्रक्रिया के माध्यम से चयनित व्यक्ति को चेयरमैन यानि अध्यक्ष प्रबन्धन निदेशक उत्तर प्रदेश पावर निदेशक पावर कार्पोरेशन और प्रबंधनिदेशक डिस्कॉम और निदेशक डिस्कॉम व अन्य कम्पनियो के भी प्रबंधनिदेशक व निर्देशक चुने जाने का प्रवधान है परन्तु सन 2000 से लगातार भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बिना किसी चयन प्रक्रिया के अध्यक्ष व प्रबंधनिदेशको की कुर्सी पर बैठ तानाशाहीपूर्ण व्यहवार कर के इस उद्योग को चला रहे है बीच मे कुछ समय के लिए एक प्रबन्धनिदेशक उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन के पद पर एक अभियन्ता जरूर आया था जिसने इस उद्योग मे हो रहे धाटे को कम भी किया परन्तु वर्तमान मे अवैध रूप से अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन और प्रबंधनिदेशक पावर कार्पोरेशन व अन्य प्रबंधनिदेशको के सभी पदो पर अनुभवहीन बड़केबाबुओ ने कब्जा कर रखा है सुधार की बात करने वाले वर्तमान अध्यक्ष व प्रबंधनिदेशको के राज मे वितरण निगमो से लेकर अन्य निगमो मे निरंतर घाटा बढता ही जा रहा है 2019 मे 20= 8892.17 करोड 2020/2021 मे 14525.78 करोड 2021/2022 मे 3872.75 करोड और 2022/2023 मे अब तक 7589.22 करोड है यानि यह है बडका बाबूओ के धाटे की दास्तान वही जब अभियनता प्रबंधनिदेशक था तो घाटा 2930.70 तक धाटा आ गया था लेकिन बडकऊ तो बडकऊ है बेवजह के खर्च बढा कर घाटे पर घाट होता ही जा रहा है पूर्व के एक अवैध रूप से नियुक्त अध्यक्ष और प्रमुख सचिव ऊर्जा रहे एक बडकऊ ने तो 200 करोड रूपय सालाना सिर्फ वेतन पर खर्च करने के लिए पूरे प्रदेश मे बिजली थाने ही खुलवा इस 200 करोड मे अन्य खर्च शामिल नही है* *जब कि ऐसी किसी भी व्यवस्था की जरूरत ही नही थी सिविल पुलिस अपना कार्य वर्तमान समय की व्यवस्था से मुफ्त मे इससे भी अच्छी तरह से कर रही थी परन्तु बडकऊ तो बडकऊ है फिर एकाएक ERP नामक भूत खरीद लिया गया वह भी सैकडो करोड मे जिसको चलाने मे आज तक दिक्कत होती है चर्चा यहा तक है कि हर ट्रान्सफर पोस्टिग सीजन के बाद पहचन या आई डी बनाने मे मोटा खर्च आता है और लम्बे समय तक काम बाधित रहता है जब आई डी बनेगी तब काम चालू होगा* । इन्ही बडकऊ की साथी जो कि विधि विशेषज्ञा थी ने नियमो को दर किनार करते हुए ऐसे ऐसे आदेश परित किये कि जो कि कानूनन इनके अधिकार क्षेत्र से बाहर थे केन्द्रीय सतर्कता आयोग की नियमावलियो की भी इन लोगो ने धज्जिया उडा दी* वर्तमान समय मे मध्यांचल के बडकऊ और दक्षिणाचल के बडका बाबू ने तो भारतीय सविधान की धाराए बदल दी भारतीय किरायदारी अधिनियम मे जो साफ लिखा है कि ग्यारह माह से अधिक किराये नामे को रजिस्टर कराना जरूरी होता है परन्तु ग्यारह माह तक के किरायेनामो को भी वही कानूनन मान्यता प्राप्त होती है जो कि रजिस्ट्रार किरायेनामे को लेकिन बडकऊ तो कानून के ऊपर है जो मन मे आया आदेश कर दिया अब आम जनमानस से लेकर सभी अधिकारीगण इनके आदेश को मानने के लिए बाध्य है कोई भी इनके खिलाफ आवाज नही उठा सकता । यहाँ तक कि ऊर्जा क्षेत्र के नियमो को बनाने वाली सस्था को भी यह गुमराह करने से नही चूकते और तो और *उच्चतम न्यायालय मे शपथपत्र देने के बाद भी उसका अनुपालन सुनिश्चित नही होता 2010 मे उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश को भी इन लोगो ने हैगर मे टाग दिया जिसमे प्रमुख सचिव ऊर्जा और अध्यक्ष पावर कार्पोरेशन दोनो एक ही व्यक्ति नही हो सकता* *लेकिन बडका बाबू तो बडका बाबू तो बडका बाबू है सारे नियम कानून इनके नीचे जो चाहेगे करेगे कोई सुनवाई तो होती ही नही स्वयत् सस्थाओ के टेण्डर एक साथ करने के कम्पनी ऐक्ट को दर किनार करने के आदेश जब दे सकते है आपत्ति करने पर न्यायालय जाने को बोलते है तो फिर हजारो करोड के घाटे मे तो विभाग जाएगा ही ।
अब जब सभी संगठनो ने जब नियमानुसार नियुक्ती की बात कह रहे है तो इन्होने उनकी आवाज का दबाने की पूरी तैयारी कर ली है अब देखना है कि आज 17 तारीख को शक्तिभवन परिसर मे क्या होता है । खैर
युद्ध अभी शेष है