एक झलक

शारदीय नवरात्र* :- चतुर्थ दिवस पर करें मां कूष्माष्डा की भक्ति,माता दिलाती हैं गम्भीर रोगों से मुक्ति

वाराणसी18 अक्टूबर, नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है बुधवार के दिन चौथा व्रत रखा जाएगा। इस दिन मां कूष्माण्डा के लिए व्रत रखा जाता है। मां कुष्माण्डा का स्वरुप बहुत ही पावन है। मां की आठ भुजाएं हैं, इसलिए मां कूष्माण्डा अष्टभुजा वाली भी कहलाईं। इनके आठ हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और माला है। मां कूष्माण्डा का वाहन सिंह है। जिनकी साधना करने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है।

ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने वाली

माँ कूष्मांडा सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत’ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व नहीं था।

मां कूष्माण्डा का स्वरूप

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है, इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता इनके तेज़ और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज़ और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रहीं हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में स्थित तेज़ इन्हीं की छाया है। इनकीआठ भुजाएं हैं,अतः ये अष्टभुजादेवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु,धनुष,बाण,कमलपुष्प,अमृतपूर्ण कलश ,चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है एवं इनका वाहन सिंह है।

भेलूपुर क्षेत्र में है माँ कुष्मांडा का मंदिर

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। देश में देवी के इस रूप में कुछ ही मंदिर हैं। जिनमें कानपुर, वाराणसी और उत्तराखंड के कुष्मांडा देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं। इनमें भी वाराणसी में मौजूद मंदिर बहुत पुराना माना जाता है और उसका महत्व भी बहुत है। इसे दुर्गा मंदिर कहा जाता है और इसमें देवी के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी भागवत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख है।

मान्यताओं के अनुसार देवी कुष्मांडा के दर्शन से शत्रुओं का विनाश होता है। सुख शांति और धन एवं वैभव की प्राप्ति होती है। वाराणसी के दक्षिण क्षेत्र के भव्य मंदिर में देवी दुर्गा कुष्मांडा रूप में विराजमान हैं। मंदिर से लगे कुंड को दुर्गा कुंड कहा जाता है।
देवी भागवत में है इस मंदिर का उल्लेख
ये दुर्गा मंदिर बनारस के रामनगर में स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर का पुन: निर्माण बंगाली महारानी ने 18 वीं सदी में करवाया था। वर्तमान में यह मंदिर बनारस के शाही परिवार के नियंत्रण में आता है। वहीं पौराणिकता मान्यता है कि सुबाहु नाम के राजा ने कठिन तप कर देवी से यह वरदान मांगा था कि देवी इसी नाम से उनकी राजधानी वाराणसी में निवास करें। देवी भागवत पुराण में इसका उल्लेख है।

यह भी कथा है कि शुम्भ-निशुम्भ के वध के बाद थकी देवी ने इस स्थान पर ही शयन किया था। उनके हाथ से उनकी असि जिस स्थान पर खिसकी, वह स्थान असि नदी के रूप में विख्यात हुआ। लिंग पुराण के अनुसार दक्षिण में दुर्गा देवी काशी क्षेत्र की रक्षा करती हैं।

मान्यता: स्‍वंय प्रकट हुई थी देवी की मूर्ति

एक मान्‍यता के अनुसार, इस मंदिर में स्‍थापित मूर्ति को मनुष्‍यों द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि यह मूर्ति स्‍वंय प्रकट हुई थी, जो लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने आई थी। नवरात्रि और अन्‍य त्‍यौहारों के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्‍तगण श्रद्धापूर्वक आते है। गैर – हिंदू लोगों को मंदिर के आंगन और गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है क्‍योंकि इस मंदिर के परिसर में काफी संख्‍या में बंदर उपस्थित रहते है।

नागर शैली में बना मंदिर

यह मंदिर भारतीय वास्‍तुकला के उत्‍तर भारतीय शैली यानी नागर शैली में बना है। इस मंदिर में एक वर्गाकार आकृति का तालाब है। जो दुर्गा कुंड के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का शिखर काफी ऊंचा है जो चार कोनों में विभाजित है और हर कोने में एक प्रमुख शिखर और अन्य छोटे शिखर बने हुए हैं। यह इमारत लाल रंग की है। मंदिर में देवी के वस्‍त्र भी गेरू रंग के है।

कुंड के दक्षिण आयताकार आंगन में नागर शैली में बने मंदिर के चारों ओर बरामदे हैं। बीच में मंडप से सजा हुए मुख्य मंदिर के पश्चिमी द्वार के बायीं तरफ गणपति और दक्षिण तरफ भद्रकाली और चंडभैरव के मंदिर हैं। पूर्व-उत्तर कोण में महालक्ष्मी और महासरस्वती विराजमान हैं। इसके अलावा राधाकृष्ण, हनुमान, शिव आदि देवी-देवताओं की भी मूर्तियां हैं।

18 वीं सदी से पहले नाटौर की रानी भवानी ने बनवाया था मुख्य मंदिर

माना जाता है कि 18 वीं सदी से पहले मुख्य मंदिर नाटौर की रानी भवानी ने बनवाया है। चारों ओर के बरामदे बाद में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बनवाए हैं। चारों ओर से पत्थर की सीढि़यों से युक्त दुर्गाकुंड पहले भूमिगत नाले के जरिए गंगा से जुड़ा हुआ था। बाद में इसी रास्ते गंगा का पानी भी बढ़ जाने के कारण बंद कर दिया गया।

मां कूष्माण्डा की पूजाविधि

देवी कूष्मांडा की पूजा में कुमकुम, मौली, अक्षत, पान के पत्ते, केसर और शृंगार आदि श्रद्धा पूर्वक चढ़ाएं। सफेद कुम्हड़ा या कुम्हड़ा है तो उसे मातारानी को अर्पित कर दें, फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में घी के दीप या कपूर से मां कूष्मांडा की आरती करें। आरती के बाद उस दीपक को पूरे घर में दिखा दें ऐसा करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है। अब मां कूष्मांडा से अपने परिवार के सुख-समृद्धि और संकटों से रक्षा का आशीर्वाद लें। देवी कुष्मांडा की पूजा अविवाहित लड़कियां करती हैं, तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ती होती है। सुहागिन स्त्रियां को अखंड सौभाग्य मिलता है।

मां कूष्मांडा का प्रिय भोग

मां कूष्मांडा को पूजा के समय हलवा, मीठा दही या मालपुए का प्रसाद चढ़ाना चाहिए और इस भोग को खुद तो ग्रहण करें ही साथ ही ब्राह्मणों को भी दान देना चाहिए।

मां कूष्मांडा का प्रिय फूल और रंग

मां कूष्मांडा को लाल रंग प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित कर सकते हैं, इससे देवी प्रसन्न होती हैं।

मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व

देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग,शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। जिस व्यक्ति को संसार में प्रसिद्धि की चाह रहती है, उसे मां कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। देवी की कृपा से उसे संसार में यश की प्राप्ति होगी।

देवी का प्रार्थना मंत्र-

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
देवी कूष्माण्डा का बीज मंत्र-
ऐं ह्री देव्यै नम:

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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