स्वच्छ गंगा मिशन का काम आंखों को धोखा देने वाला- हाईकोर्ट
प्रयागराज 28सितंबर :इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा में हो रहे प्रदूषण पर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए गंभीर टिप्पणी की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने 26 सितंबर सोमवार को जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए स्वच्छ गंगा मिशन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि, ‘स्वच्छ गंगा मिशन का काम आंखों को धोखा देने वाला है। स्वच्छ गंगा मिशन पैसा बांटने वाली मशीन बन गया है।’
हाईकोर्ट ने स्वच्छ गंगा मिशन पर टिप्पणी करके एक तरह से मोदी सरकार पर टिप्पणी किया है और सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वच्छ गंगा मिशन को कटघरे में खड़ा करते हुए बड़ी गंभीर एवं कड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा है कि स्वच्छ गंगा मिशन का काम आंखों को धोखा देने वाला है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। 26 सितंबर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल की गई एक याचिका पर चीफ जस्टिस राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पीठ में सुनवाई हुई।
इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने गंगा प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) यानी नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को कटघरे में खड़ा किया। चीफ जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा कि, “स्वच्छ गंगा मिशन का काम आंखों को धोखा देने वाला है। यह मिशन केवल पैसा बांटने की मशीन बन गया है। बांटे गए पैसे से गंगा की सफाई हो रही है या नहीं, इसकी न तो निगरानी हो रही है और न ही जमीनी स्तर पर कोई काम दिख रहा है।”
चीफ जस्टिस राजेश बिंदल ने स्वछ गंगा मिशन से उसके द्वारा बांटे गए बजट का ब्यौरा भी पूंछा। चीफ जस्टिस ने पूंछा कि, “गंगा सफाई के लिए खर्च किए गए करोड़ों रुपए के बजट से काम हुआ या नहीं।”
चीफ जस्टिस के इस सवाल पर स्वच्छ गंगा मिशन कोई जवाब नहीं दे सका। स्वच्छ गंगा मिशन के अधिकारी चुप्पी साधे रहे।
हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान एनएमसीजी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल निगम ग्रामीण एवं शहरी, नगर निगम प्रयागराज समेत कई विभागों के द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया और उनसे जानकारी मांगी। लेकिन इनमें से कोई भी संतोषजनक जानकारी नहीं दे सका। हाईकोर्ट इस पर संतुष्ट नहीं हुआ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पूंछा कि, “इतनी बड़ी परियोजना के लिए पर्यावरण इंजीनियर हैं या नहीं।” इस पर हाईकोर्ट को एनएमसीजी की ओर से जवाब दिया गया कि एनएमसीजी में काम कर रहे सारे अधिकारी पर्यावरण इंजीनियर ही हैं। उनकी सहमति के बिना परियोजना पास नहीं होती है। इस पर हाईकोर्ट ने फिर पूछा कि, परियोजनाओं की निगरानी कैसे करते हैं? इस पर कोई जवाब नहीं दे सका।
कोर्ट ने दाखिल हलफनामों में पाया कि कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज सहित अन्य शहरों के लगाए गए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मानक के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं।
हलफनामों में कोर्ट ने यह भी पाया कि, “कानपुर में सारे नाले अनटैप्ड हैं, जबकि वाराणसी में दो नाले अनटैप्ड हैं। इससे नालों का पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भी यही रिपोर्ट थी। ज्यादातर एसटीपी काम नहीं कर रहे हैं और कुछ जो काम रहे हैं, वो मानक के अनुसार नहीं हैं।”
गंगा प्रदूषण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा की गई गंभीर एवं कड़ी टिप्पणी से स्वच्छ गंगा मिशन की पोल खुल गई है और यह साबित हो गया है कि स्वच्छ गंगा मिशन के नाम पर देश एवं यहां के लोगों को गंगा सफाई के नाम पर धोखा दिया जा रहा है।
इसके साथ ही देश की जनता से टैक्स के नाम पर सरकार द्वारा वसूले गए पैसे को गंगा की सफाई के नाम पर लूटा जा रहा है। सरकार जनता के पैसे को लुटवा रही है और गंगा साफ नहीं हो रही है बल्कि गंगा वैसी ही मैली है।