पूर्वांचल

नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता के दर्शन का विधान

वाराणसी26मार्च,वासंतिक नवरात्र के पांचवे दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप देवी स्कंदमाता की पूजा होती है। स्कंदमाता का मंदिर वाराणसी के जैतपुरा में स्थित है। सुबह से ही मां के दर्शन के लिए श्रद्धालु कतारबद्ध हैं। माता को चुनरी, नारियल के साथ उनकी प्रिय पीली वस्तु अर्पित कर रहे हैं। इनके दर्शन मात्र से जीवन में सुख, शान्ति और एकाग्रता आती है।
मंदिर के महंत ने बताया कि नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता के दर्शन का विधान है जिनका मंदिर जैतपुरा में स्थित है। माता के दर्शन से संतान सुख की मनोकामना पूरी होती है इसलिए वर्ष भर इनके दर्शन को सुहागिनें मंदिर आती हैं। उन्होंने बताया कि स्कंदमाता को कार्तिकेय बहुत प्यारे हैं इसलिए उन्हें स्कंदमाता कहा गया। साथ ही यहां उनकी गोद में कार्तिकेय विराजमान हैं।

दर्शन को आई महिलाओं ने बताया कि साल में शारदीय नवरात्र के अलावा अन्य दिनों में भी माता के दर्शन के लिए हम लोग आते हैं और असीम सुख की प्राप्ति होती है ।
देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

नवरात्र-पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है। स्कंदमाता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है। अलसी एक औषधि है, जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्र में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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