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आज पुरी में श्री जगन्नाथ की यात्रा के साथ ही काशी में भी प्रभु जगन्नाथ की 3 दिवसीय रथयात्रा मेले का शुभारंभ, जाने भगवान जगन्नाथ की रथ से जुडी खास बातें

वाराणसी/ओडिसा 20 जून : काशी में भगवान विष्णु के अवतार प्रभु जगन्नाथजी की 3दिवसीय रथयात्रा मेले का मंगलवार को शुभारंभ हुआ, फूल मलाओ से सजे रथ पर सवार होकर भगवान जगन्नाथजी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ भक्तो को दर्शन देने निकले मान्यता है कि काशी में इस दर्शन पर भक्तो को उतना ही पुण्य मिलता है जितना कि पुरी के भगवान जगन्नाथजी के दर्शन करने से प्राप्त होता है,

आज ओडिसा के पुरी में निकलने वाली विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत हो रही है। यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष के 11वें दिन जगन्नाथ जी की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन होता है। साथ ही इस बार पारंपरिक तरीके से रथ यात्रा निकाले जाने की तैयारी पूरी कर ली गई है. आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलराम जी के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं. रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा जी का रथ और आखिरी में जगन्नाथ जी का रथ होता है. आइए जानते हैं कि रथ यात्रा से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं क्या हैं.

1. पुरी में रथयात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम व बहन सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।

2. बलराम के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं। जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को ‘पद्म रथ’ या ‘दर्पदलन’ कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘नंदीघोष’ कहते हैं, जो कि लाल और पीला होता है।

3. सभी रथ नीम की लकड़ियों से तैयार किए जाते हैं। जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए जगन्नाथ मंदिर में एक खास समिति का निर्माण किया जाता है।

4. रथ के निर्माण के लिे किसी भी प्रकार की कील, कांटे या अन्य धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

5. रथों के लिए काष्ठ चयन बसंत पंचमी से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है।

6. भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम जी का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।

इकलौते चलते-फिरते भगवान

भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में यह एक ऐसा पर्व है जहां भगवान खुद ही घूमने निकल जाते हैं। जिनकी रथ यात्रा में भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं।मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ गर्भगृह से निकलकर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं।

नारियल की लकड़ी का रथ

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती हैं और इन्हें आसानी से खिंचा जा सकता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। इसके अलावा यह रथ बाकी रथों की तुलना में भी आकार में बड़ा होता है। उनकी यात्रा बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होती है।

राजाओं के वंशज करते हैं सफाई

कहा जाता है कि जब से जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत हुई है तब से ही राजाओं के वंशज पारंपरिक रूप से सोने के हत्थे वाली झाड़ू से जगन्नाथ जी के रथ के सामने झाड़ू लगाते हैं। इसके बाद मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ इस पवित्र रथ यात्रा की शुरुआत होती है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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