एक झलक

आपके द्वारा संपन्न प्रत्येक वह कर्म धर्म है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर परहित की भावना से किया जाए

30नवंबर2021

धर्म का अर्थ कोई कर्म विशेष नहीं है अपितु आपके द्वारा संपन्न प्रत्येक वह कर्म धर्म है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर परहित की भावना से किया जाए।

धर्म केवल मंदिर में संपन्न अनुष्ठान का नाम भर ही नहीं है अपितु किसी भूखे प्राणी या जीव के लिए यथायोग्य आहार का दान भी धर्म है केवल अपने आराध्य पर दूध चढ़ाने से ही धर्म संपन्न नहीं हो जाता अपितु किसी प्यासे को पानी को पिलाकर भी धर्म का निर्वहन हो जाता है।

धर्म को अगर सरल शब्दों में कहें तो वह ये कि अपने कर्तव्य का पूर्ण निष्ठा, पूर्ण समर्पण व पूर्ण पवित्रता के साथ निर्वहन भी धर्म है धर्म का सम्बन्ध बाहर की क्रिया विशेष से नहीं अपितु भीतर की शुचिता से है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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