एक झलक
जीवन में नये रास्ते घर बैठे नहीं मिलेंगे
9नवंबर2021
संसार में बहुत लोग असफल हो जाने के डर से प्रतिस्पर्धा में नहीं पड़ते, यह कहना कि प्रभु ने जो दिया है मैं उसमें सन्तुष्ट हूँ, यह संतोष नहीं कमजोरी है भय है, नकारात्मक संतोष है अपने आप को विकसित करने से रोक देने जैसा है, फूल को खिलने से रोक देने जैसा है।
मेहनत और कर्म करने में पूरे असंतोषी रहिए, प्रयास की सात्विक अंतिम सीमाओं तक पहुँचिए कर्म के बाद जितना मिले, जैसा मिले, जब मिले, जहाँ मिले उसमें संतोष रखिए और प्रभु पर भरोसा रहे। कर्म जरूर करते रहें, जीवन में नये रास्ते घर बैठे नहीं मिलेंगे, वो कर्म करते-करते नजर आयेंगे भगवान् को कर्मशील भक्त ही प्रिय हैं।