एक झलक
धन ही सामान्य जीवन में मनुष्य का परम् मित्र है
17नवंबर2021
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सज्जनाश्च।
तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति अर्थो हि लोके मनुषस्य बन्धु:॥
भावार्थ– किसी धनहीन व्यक्ति के मित्र, संतान, पत्नी तथा घनिष्ठ मित्र भी उसका साथ छोड़ देते हैं यदि वह फिर से धनवान हो जाता है तो वे ही लोग फिर से उसके आश्रय में आ जाते हैं इसीलिए कहा गया है कि धन ही सामान्य जीवन में मनुष्य का परम् मित्र है।
इस सुभाषित से समाज में व्याप्त दुर्बलता बताई गई है कि समाज पैसे को अधिक महत्व दे रहा है और स्वार्थी प्रवृत्ति बढ़ रही है यही सनातन धर्म के पतन का कारण भी है।