नवरात्रि व्रत में क्यों नहीं खाया जाता प्याज और लहसुन जानिए इसके पीछे का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
11 अप्रैल 2024
नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि के पावन पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना विधि-विधान के साथ होती है। धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से नवरात्रि व्रत का पालन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों के नियमानुसार, नवरात्रि में सात्विक भोजन ग्रहण करने की सलाह दी गई है। नवरात्रि के दौरान लहसुन और प्याज के सेवन की मनाही है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण तो है ही साथ ही इस संबंध में पौराणिक कथा का भी वर्णन मिलता है। तो आइए जानते हैं नवरात्रि के दौरान लहसुन प्याज क्यों नहीं खाया जाता है ?
शास्त्रों के अनुसार लहसुन और प्याज तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं। यानी इनके सेवन से मन में जुनून, उत्तेजना, कामेच्छा, अहंकार और क्रोध जैसे भाव आते हैं। जबकि नवरात्रि में संयम, शांत, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस कारण नवरात्रि में लहसुन और प्याज के सेवन की मनाही होती है।
प्याज और लहसुन खाने से शरीर में गर्मी बढ़ती है, जिससे मन में कई प्रकार की इच्छाओं का जन्म होता है। इसके अलावा व्रत के समय दिन में सोने को वर्जित माना गया है। ये भोजन शरीर में सुस्ती भी बढ़ाता है। यही कारण है नवरात्रि के 9 दिनों में प्याज और लहसुन नहीं खाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब समुंद्र मंथन से अमृत प्राप्त हुआ तो मोहिनी रूप धारण करे हुए भगवान विष्णु जब देवताओं में अमृत बांट रहे थे तभी स्वर्भानु नाम का एक राक्षस देव रूप धारण करके देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और धोखे से अमृत का सेवन कर लिया था। तभी सूर्य और चंद्रमा ने उसे देख लिया और यह बात विष्णु जी को बता दी।
भगवान विष्णु को जैसे ही यह मालूम हुआ तो उन्होंने क्रोध में असुर का सर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन तब तक राक्षस के मुख में गले तक अमृत पहुंच चुका था इसलिए उसका धड़ और सिर अलग होने पर भी वह जीवित रहा जब विष्णु जी ने राक्षस का सिर धड़ से अलग किया तो अमृत की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे।
प्याज और लहसुन अमृत की बूंदों से उपजे होने के कारण यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है और रोगों को नष्ट करने में सहायक होते हैं लेकिन इनमें मिला अमृत राक्षसों के मुख से होकर गिरा हैं, इसलिए इनमें तेज गंध है। यही वजह है कि राक्षस के मुख से गिरे होने के कारण इन्हें अपवित्र माना जाता है और देवी-देवताओं के भोग में इस्तेमाल नहीं किया जाता।