पूर्वांचल

पितृपक्ष में काशी के पिशाच-मोचन में पिंडदान करने पर माता-पिता सहित पूर्वजों को मिलती है मुक्ति

वाराणसी 25 सितंबर :काशी मोक्ष की नगरी होने के यहां न होने काल एकोदिष्ट श्राद्ध्यापार्वक श्राद्ध, त्रिपिंडीय श्राद्ध विशेषकर अपने पूर्वजों पिता-पितामह, प्रपितामह सहित मातृ पक्ष ननिहाल के लोगों के लिए भी पितृपक्ष में विशेषकर काशी के पिशाच-मोचन मुक्तिधाम में होने वाले पितरों की मुक्ति के लिए ज्ञात-अज्ञात तथा शहीद देश के सैनिकों के लिए भी। पवित्र गंगातट सहित समस्त पितृयज्ञ इस वर्ष 30 सितंबर से महालय आरंभ होकर 14 अक्टूबर तक मुक्ति प्रदान करने वाली काशी का स्थान सबसे उपयुक्त है। तिल मिश्रित जल तथा पिंडदान विधान से करने पर तथा पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, समर्पण ही श्राद्ध कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश तथा विचरण करते हैं तब पितृलोक पृथ्वीलोक के सबसे नजदीक आता है। मनुष्य पितरों के प्रति उनकी तिथि पर श्राद्ध संपन्न कर अपने सामर्थ्यानुसार फल-फूल, मिष्ठान्न, नानाविध भोगों से ब्राह्मण भोजन करते हैं। इससे प्रसन्न होकर पितर आशीर्वाद देकर जाते हैं। काशी तीर्थ में मरण भी मंगल दायक होता है। वैसे, काशी में पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान भी परम मंगलदायक होता है। ”मंगलम् मरणं यत्र सा काशी विश्व विश्रुता” काशी मुक्तिदायिनी होने से पितृपक्ष में किए गए समस्त श्राद्ध मानव के जीवन में किए गए जितने भी पाप हैं वह तत्क्षण नष्ट हो जाते हैं तथा तीन पीढ़ी पितृ पक्ष तथा तीन पीढ़ी मातृपक्ष, ज्ञात अज्ञात सभी की काशी में तत्क्षण मुक्ति हो जाती है। धर्मशास्त्र में कहा गया है कि पितरों का पिंडदान करनेवाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वगम्, बल, लक्ष्मी, धन-धान्य आदि प्राप्त करता है। वह भी जब संयोगवश ‘काश्यां मरणान्मुक्त’ के अनुसार काशी में समस्त श्राद्ध संपन्न कराए जाएं तो कहना ही क्या। यह तो दिव्यता प्रदान करने वाला कहा जाएगा।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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