पूर्वांचल

मृत्यु को जीतना हो तो जन्म को समझो– शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती 1008

वाराणसी 9 अक्टूबर :मृत्यु को जीतने के लिए अनेक लोगों ने तरह-तरह के उपाय खोजे। दैत्यों ने तो स्वयं को अमर बनाने के लिए ऐसे-ऐसे वरदान माॅगे हैं जो अद्भुत हैं परन्तु कोई आज तक मृत्यु को जीत न सका। जन्म होगा तो मृत्यु निश्चित ही आएगी। यदि मृत्यु को जीतना हो तो ऐसा उपाय करना होगा कि जिससे जान लें कि जन्म हमारा नहीं, हमारे शरीर का हुआ है।

उक्त उद्गार परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती 1008 ने कोरोनाकाल में काल-कवलितों की सद्गति के लिए काशी के केदार क्षेत्र के शङ्कराचार्य घाट पर स्थित श्रीविद्यामठ में आयोजित मुक्ति कथा के अवसर पर कही।

उन्होंने कहा कि हमारे धर्मशास्त्रों में मुक्ति के दो मुख्य प्रकार प्रकार बताए गये हैं। भक्तों की मुक्ति और ज्ञानी की मुक्ति। भक्तों को मिलने वाली मुक्ति पाँच प्रकार की कही गयी है और ज्ञानी को कैवल्य मुक्ति प्राप्त हो जाती है।

आगे कहा कि जो भक्त जिस भगवान् का चिन्तन करता है उसे उसी लोक की प्राप्ति होती है। ज्ञानी को ज्ञान से मुक्ति मिलती है। ज्ञानी की मुक्ति में कहीं भी आवागमन नहीं होता। वह जहाॅ हैं वहीं रहता है और उसे मुक्त होने का बोध हो जाता है।

उन्होंने भागवत में वर्णित क्रम मुक्ति एवं सद्यः मुक्ति को भी समझाया। योग की व्याख्या करते हुए कहा कि आजकल यम और नियम को छोड़कर आसन से शुरुआत की जा रही है। सही अर्थों में योग को समझने की आवश्यकता है। योग का अर्थ केवल शरीर तक ही सीमित नहीं है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *