एक झलक

पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं

15सितम्बर 2022

पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं लेकिन जो लोग पितर हैं ही कहां यह मानकर उचित तिथि पर जल व शाक से भी श्राद्ध नहीं करते हैं उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं और बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार,पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है यहां श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से है सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है आइए जानते हैं श्राद्ध पक्ष से जुड़ी हर वो जरूरी बात जिसे आपको जानना चाहिए।श्राद्ध किसे कहते हैं
श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करने से है सनातन मान्यता के अनुसार जो परिजन अपना देह त्यागकर चले गए हैं, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ जो तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं,ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें।

कौन कहलाते हैं पितर
जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित हों,बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो या पुरुष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें पितर कहा जाता है पितृपक्ष में मृत्युलोक से पितर पृथ्वी पर आते है और अपने परिवार के लोगों को आशीर्वाद देते हैं पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनको तर्पण किया जाता है पितरों के प्रसन्न होने पर घर पर सुख शान्ति आती है।

कब बनता है पितृपक्ष का योग
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है पितृपक्ष के १५ दिन पितरों को समर्पित होता है शास्त्रों अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपक्ष की पूर्णिणा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो शास्त्रों मे कहा गया है कि साल के किसी भी पक्ष में, जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिए।

जब याद ना हो श्राद्ध की तिथि
शास्त्रों के अनुसार यदि किसी को अपने पितरों के देहावसान की तिथि मालूम नहीं है तो ऐसी स्थिति में आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है इसके अलावा यदि किसी की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।

श्राद्ध की वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती हैं
*श्राद्ध का अर्थ ‘श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्’*
श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न,तिल, कुश,जल के दान) का नाम ही श्राद्ध है श्राद्धकर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं।
श्राद्ध-कर्म से व्यक्ति केवल अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सभी प्राणियों व जगत को तृप्त करता है पितरों की पूजा को साक्षात् विष्णुपूजा ही माना गया है।
प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिण्ड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है इस शंका का स्कन्दपुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है।
एक बार राजा करन्धम ने महायोगी महाकाल से पूछा ’मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिण्डदान किया जाता है तो वह जल, पिण्ड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है
भगवान महाकाल ने बताया कि विश्वनियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरुप होकर पितरों के पास पहुंचती है इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
वे भूत,भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं पांच तन्मात्राएं,मन,बुद्धि,अहंकार और प्रकृति इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं इसलिए देवता और पितर गन्ध व रसतत्व से तृप्त होते हैं शब्दतत्व से रहते हैं और स्पर्शतत्व को ग्रहण करते हैं पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वर देते हैं।
पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण और उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं। बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती।
जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है,पशु का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है,वह यहीं रह जाती है।
किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है विश्वेदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं यदि पितर देवयोनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘अमृत’ होकर प्राप्त होता है यदि गन्धर्व बन गए हैं तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
यदि पशुयोनि में हैं तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है नागयोनि में वायुरूप से, यक्षयोनि में पानरूप से, राक्षसयोनि में आमिषरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रुधिररूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता हैं।
जिस प्रकार बछड़ा झुण्ड में अपनी मां को ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मन्त्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो,तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।

पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न!!!!!
श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।
(यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)
यमराज जी का कहना है कि
श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है
पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं
परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं
श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है
पितरगण स्वास्थ्य,बल,श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख,स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।
श्राद्ध न करने से होने वाली हानियाँ
शास्त्रों में श्राद्ध न करने से होने वाली हानियों का जो वर्णन किया गया है, उन्हें जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं शास्त्रों में मृत व्यक्ति के दाहकर्म के पहले ही पिण्ड पानी के रूप में खाने पीने की व्यवस्था कर दी गयी है यह तो मृत व्यक्ति की इस महायात्रा में रास्ते के भोजन-पानी की बात हुई परलोक पहुंचने पर भी उसके लिए वहां न अन्न होता है और न पानी यदि सगे-सम्बन्धी भी अन्न-जल न दें तो भूख-प्यास से उसे वहां बहुत ही भयंकर दु:ख होता है।
आश्विनमास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं लेकिन जो लोग पितर हैं ही कहां यह मानकर उचित तिथि पर जल व शाक से भी श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं और बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है।
मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, निरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है।
धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध
ब्रह्मपुराण में बताया गया है कि धन के अभाव में श्रद्धापूर्वक केवल शाक से भी श्राद्ध किया जा सकता है यदि इतना भी न हो तो अपनी दोनों भुजाओं को उठाकर कह देना चाहिए कि मेरे पास श्राद्ध के लिए न धन है और न ही कोई वस्तु अत: मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ वे मेरी भक्ति से ही तृप्त हों।
पितृपक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है,अत: प्रत्येक गृहस्थ को अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण अवश्य करना चाहिए।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *