एक झलक

पितृगणों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहते हैं “श्रद्धया इदं श्राद्धम”

11सितम्बर 2022

पितरों वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता” ll

महालय में मुख्यतः दो तरह के श्राद्ध किए जाते
1. पार्वण श्राद्ध 2. एकोदिष्ट श्राद्ध, परंतु कुछ लोग जो मृत्यु के समय सपिण्डन नहीं करवा पाए वे इन दिनों में सपिण्डन भी करवाते हैं ।
जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन किया जाता है उसे सपिण्डन श्राद्ध कहते हैं इसी सपिण्डन श्राद्ध को सामान्य बोलचाल की भाषा में पितृ मेलन या पटा में मिलाना कहते हैं
प्रश्न उठता है सपिण्डन कब करना चाहिए ?
सपिण्डन के विषय में तत्वदर्शी मुनियों ने अंत्येष्टि से 12 वे दिन, तीन पक्ष, 6 माह में या 1 वर्ष पूर्ण होने पर सपिण्डन करने को कहा है ।
1 वर्ष पूर्ण होने पर भी यदि सपिण्डन नहीं किया गया है तो 1 वर्ष उपरांत कभी भी किया जा सकता है परंतु जब तक सपिण्डन क्रिया संपन्न नहीं हो जाती तब तक सूतक से निवृत्ति नहीं मानी जाती जिसका उल्लेख गरुड़ पुराण के 13 वे अध्याय में किया गया है और कर्म का लोप होने से दोष का भागी भी बनना पड़ता है
श्राद्ध करना क्यों आवश्यक है
पितृलोक भी अदृश्य जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिए दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है तो उनकी सक्रियता के निमित्त हमें श्राद्ध करना चाहिए
अर्यमा भगवान श्री नारायण का अवतार हैं एवं संपूर्ण जगत के प्राणियों के पितृ हैं तो जब हम पितरों के निमित्त कोई कार्य करते हैं तो परोक्ष रूप से भगवान नारायण की ही उपासना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ।
गरुड़ पुराण केअध्याय 13 श्लोक 96 मैं उल्लेख आया है की प्रेत कार्य को छोड़कर अन्य किसी कर्म का पुनः अनुष्ठान नहीं किया जाता किंतु प्रेत की अक्षय तृप्ति के लिए पुनः पुनः पिंड दान आदि करना चाहिए ।
श्राद्ध मुख्यतः 96 प्रकार के होते हैं आज हम महालय में होने वाले श्राद्ध की चर्चा करेंगे ।
पितृपक्ष में दो तरह के श्राद्ध किए जाते है।
1. पार्वण श्राद्ध यह श्राद्ध माता- पिता, पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा ), वृद्ध परपितामह सपत्नीक
मातामह (नाना), प्रमातामह, वृद्ध प्रमातामह सपत्निक का श्राद्ध होता है ।

2. एकोदिष्ट श्राद्ध – किसी एक के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध एकोदिष्ट श्राद्ध कहलाता है इसके अंतर्गत पार्वण श्राद्ध में वर्णित लोगों को छोड़कर अन्य जितने रिश्ते हैं उन सब का श्राद्ध किया जाता है ।

श्राद्ध किस तिथि में करें ?
जिस तिथि पर जो व्यक्ति मरता है उसी तिथि को क्षयाह तिथि माना जावेगा अतः मृत्यु तिथि पर ही श्राद्ध करना चाहिए कुछ विशिष्ट श्राद्ध भी हैं जो इस प्रकार होते हैं:-
1. पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध प्रोष्टपति श्राद्ध कहलाता है पूर्णिमा को जिसकी मृत्यु हुई हो उसका पार्वण श्राद्ध अश्विन कृष्ण पक्ष की द्वादशी या सर्व पितृमोक्ष अमावस्या को किया जाना चाहिए ।

2. सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो उनका श्राद्ध मातृ नवमी को किया जाता है सौभाग्यवती स्त्री के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध में ब्राह्मण के अतिरिक्त ब्राह्मणी को भी भोजन कराना चाहिए ।

3. विधवा या क्वारी स्त्री का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही होगा ।

4. सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी को होता है ।

5. चतुर्दशी को जिसकी सामान्य मृत्यु हुई हो उसका श्राद्ध द्वादशी या अमावस्या को करें ।

6 जिनकी अकाल मृत्यु हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाना चाहिए ।

श्राद्ध हेतु तिथि का निर्धारण कैसे करें अर्थात यदि कोई तिथि 2 दिन है तो ऐसे में किस दिन श्राद्ध करें इसके लिए शास्त्रों में उल्लेख है की पार्वण श्राद्ध अपरान्ह व्यापिनी तिथि मैं किया जाता है।

इसके लिए सूत्र है ….
सूर्यास्त में से सूर्योदय घटाकर 5 का भाग दें भागफल में 3 का गुणा करें प्राप्त लब्धि को सूर्योदय में जोड़ने पर जो समय प्राप्त हो वह अपरान्ह काल का आरंभ है ।
इस समय में भागफल जोड़ने पर अपराह्न काल का समाप्ति काल प्राप्त होगा इस कालावधी मैं जो तिथि होगी उस तिथि को पार्वण श्राद्ध किया जाएगा ।
यदि 2 दिन अपरान्ह काल में वह तिथि हो तो जिस दिन तिथि का मान ज्यादा हो उस दिन उस तिथि का पार्वण श्राद्ध होगा ।

2. एकोदिष्ट श्राद्ध मध्यान्ह व्यापिनी तिथि में किया जाता है ।
मध्यान्ह निकालने का सूत्र …..
सूर्यास्त में से सूर्योदय घटाकर 5 का भाग देवें 2 का गुणा करें गुणनफल को सूर्योदय में जोड़ें यह मध्यान्ह काल का आरंभ होगा इसमें भागफल जोड़ें यह मध्यान्ह काल का समाप्ति काल होगा ।
इस कालावधि में जो तिथि हो उस तिथि का एकोदिष्ट श्राद्ध उस दिन किया जाएगा यदि किसी कारणवश तिथि पर श्राद्ध ना किया जा सका हो तो ऐसी अवस्था में द्वादशी या सर्व पित्र मोक्ष अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है ।
श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है अतः यदि श्रद्धा ना हो तो ब्राह्मण भोजन कदापि ना कराएं ब्राह्मणों को भी चाहिए की श्राद्ध में किसी के यहां भोजन करने से बचें क्योंकि श्राद्ध में भोजन करने से ब्राह्मण का तपोबल कम होता है एवं ब्रह्म तेज का ह्रास होता है ।
जिन कुंवारे बच्चों की मृत्यु तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध कुमार पञ्चमी के दिन किया जाता है
जिन सौभाग्यवती स्त्रियों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध नवमी तिथि के दिन किया जाता है।
जिन संन्यासी, ब्रह्मचारी, यति की मृत्यु तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है।
शस्त्राघात, जलने, विष आदि से मृत्यु हुई हो या ब्रह्मघाती हुए हों, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को करना चाहिए।
ज्ञात – अज्ञात सभी पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि को श्राद्ध करना चाहिए।
गया श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना चाहिए।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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