एक झलक

साधक स्वाभाविक ही भगवान में मन वाला हो जाता है

28नवंबर2021

संसार की आसक्ति छोड़ने से प्रभु का चिंतन स्वतः स्वाभाविक होता है और सम्पूर्ण कियाएँ निष्काम भावपूर्वक होने लगती हैं।

जिस प्रकार मनुष्य का समाज के किसी बड़े व्यक्ति से अपनापन हो जाता है तब उसको एक प्रसन्नता होती है ऐसे ही जब हमारी भगवान में आत्मीयता जागृत होती हो जाती है, तब हरदम प्रसन्नता बनी रहती है और एक अलौकिक विलक्षण प्रेम प्रकट हो जाता है।

संसार का आश्रय छोड़ने पर भगवान को जानने के लिए कोई अलग अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं होती फिर साधक स्वाभाविक ही भगवान में मन वाला और भगवान के आश्रित हो जाता है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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